रिश्तेदार की बेटी संग चोदन का पहला अनुभव

मेरा नाम वीरेन है. यह मध्य प्रदेश के एक छोटे से कस्बे महू की छोटी सी प्रेम कहानी है।
बात उन दिनों की है जब घरों में मोबाइल तो क्या फोन भी नहीं होते थे, टीवी और फ्रिज भी नहीं होते थे।
मैं उन दिनों 11 वीं में पढ़ता था, तब लड़के और लड़कियों के अलग स्कूल होते थे।
मनोरंजन के लिए टाउन में एक पुराना सा सिनेमा हॉल था। उन दिनों दारा सिंह मुमताज की जोड़ी छोटे क़स्बों में बहुत पसंद की जाती थी।

दिनचर्या यह होती थी कि दिन में स्कूल और शाम को दोस्तों के साथ गप्प लड़ा लेते थे। गप्पों में लड़कियों का जिक्र कम ही होता था। एक दोस्त जो थोड़ा तेज था, कभी कभी मुठ मार कर सोने की बात करता था पर तब मुझे उसका मतलब नहीं पता था।
पड़ोस में एक दो सुन्दर लड़कियाँ रहती थी पर वे सभी बाहर कम ही निकलती थी और जब कभी निकलती तो नजरें झुका कर ही चलती थी।

उन्हीं दिनों हमारे दूर के एक रिश्तेदार की बेटी हमारे यहाँ पढ़ने के लिए आई। मेरे पिता जी उसके मामा लगते थे रिश्ते में।
चूँकि गावों में हाई स्कूल नहीं होते थे इसलिए वह हमारे कस्बे में 9 वीं में दाखिला लेना चाहती थी। गाँवों में देर से पढ़ाई शुरु करने के कारण वो 18 साल की हो चुकी थी और अभी उसने आठवीं पास की थी।

पहली नज़र में वह सुन्दर और आकर्षक लगी, वह मध्यम हाइट, दिखने में सुन्दर और गोरी लड़की थी। उसका नाम विमला था और घर में सब उसे विमी कहते थे।
हमारे घर में तीन कमरे थे दो नीचे और एक पहली मंजिल पर। ऊपर के कमरे में एक मेज और दो तीन लकड़ी की कुर्सियाँ रखी रहती थीं। एक चारपाई थी जिस पर बिस्तर रखे रहते थे।
हम गर्मियों में छत पर सोते थे और नीचे ही बिस्तर बिछाते थे।

मेरे पिता जी स्थानीय बैंक में अधिकारी थे और मां गृहणी। एक छोटा भाई विजय पांचवीं में पढ़ता था।

विमी के आने के बाद भी हमारी दिनचर्या में कोई खास बदलाव नहीं आया। वह मेरे पिता जी और मम्मी के साथ नीचे आंगन में सोने लगी और हम दोनों भाई ऊपर छत पर सोते थे।
शुरू शुरू में विमी मुझसे शर्माती थी और मुझसे बहुत कम बात करती थी लेकिन वह जल्द ही मेरे छोटे भाई विजय से घुल मिल गई। उसके साथ वह स्टापू भी खेल लेती थी।
उसका दाखिला लड़कियों के स्कूल में हो गया जो घर से थोड़ी दूरी पर ही था।

विमी अब छोटे मोटे कामों में मम्मी का हाथ भी बंटाने लगी। हम दोनों भाई साथ खाना खाते थे, विमी हमें खाना परोस देती थी। उसकी कोई सहेली नहीं थी और वह घर में ही रहती थी।
स्कूल की गर्मियों की छुट्टियाँ हो गई थी और हम सब घर में ही रहते थे, कुछ ना कुछ खेलते रहते थे।
मैं और विजय कभी कभी घर में ही छुपम छुपाई खेलते थे।
जब विजय और विमी स्टापू खेलते थे तो मैं भी बीच में घुस जाता था, वे दोनों धक्का देकर मेरे को बाहर कर देते।

समय के साथ साथ विमी मुझे अच्छी लगने लगी। पहली बार मुझे किसी लड़की के इतने करीब आने का मौका मिला था। अब मैं उसके और करीब आने के मौके ढूंढने लगा।

एक दिन दोपहर को मैंने उन दोनों से कहा- आओ छुपम छुपाई खेलते हैं।
वे दोनों मान गए।
मैंने विजय से कहा कि वह आंगन में 10 तक गिन कर हमें ढूंढने आए।
हमारे घर में आंगन के एक तरफ एक ही स्नानघर था। शौचालय बाहर थोड़ी दूरी पर था।

मैं विमी को लेकर स्नानघर में छुप गया। ऐसा मैंने जान बूझ कर किया था। उन दिनों गर्मियों कि दोपहर में बड़े लोग सो जाते थे और वह समय बच्चों के खेलने के लिए सबसे अच्छा होता था। मम्मी भी अपने कमरे में पंखा चला कर सो रही थी।

स्नानघर में मैं कोने में खड़ा हो गया और विमी को अपने आगे खड़ा कर लिया। मैं उसके पीछे सट कर खड़ा हो गया। वह थोड़ी सकुचाई, पर खड़ी रही।
मेरा लिंग पहली बार तन कर खड़ा हो गया पर मैंने उसको छूने नहीं दिया। विजय ढूंढता रहा और हम सट कर खड़े रहे, मेरी सांसें उसके गालों पर पड़ रही थी, मुझे अजीब सा रोमांच हो रहा था।
मैंने धीरे से उसके कंधों पर हाथ रख दिए, उसमें थोड़ी सी सिरहन हुई पर वह खड़ी रही।

लगभग दो मिनट बाद विजय ने हमें ढूंढ लिया। इस तरह हम बारी बारी से एक दूसरे को ढूंढते रहे खेलते रहे।
अब दोपहर को खेलना एक रूटीन बन गया। जब विजय की बारी होती तो मैं विमी को साथ लेकर ही छुपता था। मैं विमी को लेकर कभी स्नानघर तो कभी ऊपर के कमरे में छुप जाता।

विमी अब पहले से अधिक खुल गई थी और मेरे आगे खड़े होने में संकोच नहीं करती थी शायद उसे भी अब ऐसा करना अच्छा लगने लगा था।
धीरे धीरे मेरी हिम्मत बढ़ने लगी। एक दिन ऊपर के कमरे में छुपते हुए मैंने उसको हल्का सा खींच कर अपना लिंग उसके नितम्बों के बीच छुआ दिया।
उसने एक बार थोड़ी सी हलचल की लेकिन चुप खड़ी रही, उसकी सांसें तेज हो गई।
मैंने विजय के हमें ढूंढने तक उसे यूँ ही सटा कर खड़े रखा, उसने कोई विरोध नहीं किया।
मेरा लिंगा गीला हो चुका था और पहली बार मुझे उतेजना का अहसास हुआ।

अगले दिन फिर वैसा ही हुआ। इस बार मैं अधिक हौंसले में था, मैंने विमी को खींच कर अपने आगे सटा लिया और उसकी छाती पर दोनों हाथ रख दिए।
उसकी सांसे गर्म हो गई और दिल की धड़कन तेज हो गई। मैंने और हिम्मत करते हुए लिंग उसके नितम्बों के बीच में लगभग गड़ा दिया।
उसने नितम्बों को जोर से भींच लिया मानो लिंग को वहीं रोकना चाहती हो। उसने अपना वजन मेरे लिंग पर डाल दिया।

मेरी इच्छा हुई की एक हाथ उसकी सलवार में डाल दूँ पर तभी विजय आ गया, हम अलग हो गए।
अब हम दोनों के बीच यह रहस्य नहीं था कि हम दोस्ती से आगे का खेल खेल रहे थे।
वह थोड़ी देर में सामान्य होकर नीचे चली गई।

अगले दिन कोई मेहमान घर आ गए और हम खेल नहीं पाए। तीसरे दिन खेलते खेलते फिर एक साथ छुपे थे। मेरा डर निकल चुका था, इस बार जब हम सट के खड़े थे तो मैं अपने लिंग को उसके नितम्बों के बीच रगड़ने लगा।
विमी को भी अच्छा लग रहा था और वह भी अपने नितम्बों को लिंग पर रगड़ने लगी।
तभी विजय आ गया।

अब हमारी समस्या यह थी कि विजय हमें जल्दी ही ढूंढने लगा।
मैंने एक और तरकीब निकाली, अगले दिन जब हम खेल रहे थे तो मैंने विजय से कहा- नुक्कड़ की दुकान से बर्फ ले आ, शिकंजी बनाते हैं।
मैंने एक आना देकर उसे भेज दिया।

अब मैं और विमी अकेले थे ऊपर वाले कमरे में। मैंने दरवाजा बन्द दिया और विमी को पीछे से थाम लिया। मेरे शरीर में कम्पन सी होने लगी। मैंने विमी के दोनों मम्मों को दबा लिया और पजामे में से ही लिंग को उसकी चूत से सटा कर कुत्ते की तरह उसे पीछे से चोदने लगा।विमी चुपचाप साथ दे रही थी। थोड़ी देर में ही मेरे शरीर में जोर से सिरहन हुई और लिंग से पायजामे में ही डिस्चार्ज हो गया।
अजीब सुख का अहसास हुआ। यह पहली बार था कि मैंने इस तरह सेक्स किया।

हम अलग हो गए। विमी की विशेषता यह थी कि इस सबके बावजूद वह सामान्य रहती थी मानो कुछ हुआ ही नहीं हो।
मुझे अभी भी पता नहीं था कि लड़की को कैसे चोदते हैं।

रात को मैं भाई के साथ छत पर सो रहा था, विजय गहरी नींद में सो रहा था, मैं लिंग को हाथ में लेकर सहलाने लगा, लिंग तन कर खड़ा हो गया।
थोड़ी देर में डिस्चार्ज हो गया और फिर एक बार असीम सुख का अहसास हुआ। अब मुझे उस दोस्त की बात याद आ रही थी मुठी मार कर सोने की बात कहता था।

अब मैं विमी को छूने के और मौके भी तलाशने लगा।
देर शाम को अँधेरा होने पर पिता जी बाहर दोस्तों से गपशप करते थे और मम्मी भी पड़ोस में चली जाती थी। विमी मैं और विजय छत पर चले जाते थे। वहाँ अँधेरा होता था और हम ठंडी हवा खाने छत पर टहलते रहते।

एक दिन हम टहल रहे थे तो मैंने विजय को एक गिलास पानी लाने नीचे भेज दिया। उसके जाते ही मैं विमी से सट कर खड़ा हो गया। मैंने उसका हाथ पकड़ा और पायजामे में अपने लिंग पर रख दिया।
विमी ने ना तो लिंग को पकड़ा और ना ही हाथ छुड़वाया।
मैंने उसके हाथ को अपने लिंग पर दबाया और मुठी मरवाने लगा। थोड़ी देर में मेरा डिस्चार्ज हो गया। विमी के हाथ पर मेरा वीर्य लग गया था।

तभी विजय ऊपर आ गया।
विमी ने मेरे पायजामे पर हाथ पोंछ दिया और दूर हट कर खड़ी हो गई।
हम कुछ देर रुक कर नीचे आ गए।

रात को मैंने फिर हाथ से अपना वीर्य छुड़वाया।

अगले दिन मैं दिन में अपने उस दोस्त से मिलने गया, मैंने जानबूझ कर लड़कियों की बात चलाई और बातों बातों में उससे पूछने लगा कि लड़की को कैसे चोदते हैं।
उसने बताया कि लड़की को नीचे लिटा कर उसकी टांगें उठा दो और टांगों के बीच सुराख़ में अपना लिंग डाल दो और अंदर बाहर करते रहो जब तक वीर्य ना छूट जाए।

अब मैं विमी को चोदने के ख्वाब पालने लगा। पर यह इतना आसान नहीं था इसके लिए ना केवल विमी का सहमत होना जरूरी था बल्कि कुछ देर के लिए एकांत भी चाहिए था।

दो तीन दिन बाद कुछ उम्मीद जगी जब विमी ने मुझे एक चैप्टर पढ़ाने लिए कहा।
मैंने माँ के सामने उससे कहा कि रात को खाने के बाद ऊपर पढ़ने वाले कमरे में मैं उसको पढ़ा दूंगा।

खाना खाकर हम तीनों ऊपर आ गए और कमरे में पढ़ने लगे।
पिताजी और मम्मी आंगन में लेटकर बातें करने लगे।
हम थोड़ी देर पढ़ते रहे, तब विजय बोला कि उसे नींद आ रही है।
मैंने उसे बाहर छत पर सोने भेज दिया।

अब मैं और विमी अकेले थे। मैंने उसको एक दो चैप्टर पढ़ाए और फिर उसके हाथ को अपने हाथ में लेकर उसकी हथेली पर पेन से उसका नाम लिखने लगा।
उसको गुदगुदी हो रही थी और वह हंस रही थी।
मैंने अपना पैर मेज के नीचे उसके पैर पर रख दिया और अपना पैर उसके पैर पर रगड़ने लगा।
वह मुस्कराती रही।

तब मैंने हिम्मत करके अपना हाथ उसकी सलवार पर टांगों के बीच रख दिया।
वह मुस्कराती रही।

अब मैं अपनी उँगलियों को सलवार ऊपर से उसकी योनि में डालने लगा। वह अपना ध्यान अपनी किताब में लगा रही थी मानो कुछ नहीं हो रहा।
अब मेरा लिंग तन गया। मैंने उसका हाथ अपने पायजामे में लिंग पर रख दिया. वह किताब में आँखे गड़ाए मेरे लिंग को सहलाने लगी। मेरी हालत पतली हो गई।

अब अपने आप को रोक पाना मुश्किल था, मैंने कमरे की लाइट बुझा दी और विमी को उठा कर बिस्तर वाली चारपाई पर लेटा दिया।
मैं उसकी सलवार का नाड़ा ढूंढने लगा, इस पर विमी ने खुद ही नाड़ा खोल दिया।

मैंने उसकी सलवार एक टांग से निकाल दी, उसने पैन्टी नहीं पहन रखी थी। मैंने अपनी उंगलियाँ उसकी योनि में डाल दीम वह पूरी तरह से गीली थी।
अब मैंने जैसे तैसे अपना लिंग योनि में डाल दिया, यह पूरी तरह से अंदर नहीं जा रहा था क्योंकि योनि बहुत टाइट थी।
मैंने जोर लगाया तो दर्द से विमी की हल्की सी चीख निकल गई, उसने अपने बदन को थोड़ा हिला कर मेरे लिंग को अंदर घुसा लिया। अब मैं उसको धीरे धीरे चोदने लगा।

मैंने पायजामा पहना हुआ था जो मैंने निकाल दिया था।
मैंने उसकी कमीज ऊपर उठा कर दोनों मम्मों को हाथों में ले लिया और उन्हें चूसने लगा।
विमी ने मेरे कूल्हों को अपने हाथों से जोर से दबा लिया। वह गांव में पली हुई थी इसलिए उसका बदन बहुत गठीला था, उसको चोदने में बहुत ही मजा आ रहा था।
लगभग तीन मिनट में मैं झड़ गया, मैंने खड़े होकर अपना पायजामा पहना, विमी ने भी अपनी सलवार पहनी और जल्दी से कमरे से निकल कर नीचे चली गई।

मैं चुपचाप छत पर आकर विजय के साथ सो गया।

अगले दिन विमी मेरे से आंखें नहीं मिला रही थी, उसके रंग ढंग से लगा कि उसको दर्द हो रही है पर वह सामान्य बनी रही जिससे किसी को कोई शक नहीं हुआ।

अगले दिन हम अलग अलग ही रहे, कोई खेल भी नहीं खेला।
रात को मैं और विजय सो रहे थे छत पर, मुझे नींद नहीं आ रही थी और रह रह कर विमी को चोदने का ही ख्याल आ रहा था।
मैंने अपना हाथ पायजामे में डाल दिया और लिंग को हिलाने लगा।

मुझे नहीं पता था कि विजय भी जाग रहा है। उसने मुझे ऐसा करते देख पूछ लिया- भैया क्या कर रहे हो?
मैं अचानक उसके सवाल से चौंक गया, मैंने संभल कर कहा- पिशाब करने की जगह में पिशाब इकट्ठा हो गया है, वह निकाल रहा हूँ।

अगले दिन हम तीनों दोपहर को ऊपर के कमरे में पढ़ रहे थे, मेरा ध्यान विमी को चोदने की तरफ था।
मैंने मेज के नीचे अपने पांव से विमी के पांव को दबाया लेकिन उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। मैंने मेज के नीचे उसकी सलवार के बीच में हाथ डाल दिया, वह वैसे ही किताब में आँख गड़ाये बैठी रही।

मैं किसी काम से खड़ा हुआ तो विजय ने मेरे पायजामे में तने हुए लिंग को देख कर कहा- भैया, आपका पिशाब फिर रुक गया है।
विमी तिरछी नजरों से यह सब देख रही थी पर बोली कुछ नहीं।
तब मैंने कहा- विमी को पिशाब निकालने दे।
अपना नाम सुन कर विमी हमारी ओर देखने लगी।
मैंने विमी का हाथ अपने लिंग पर रख दिया और उससे हिलवाने लगा। विमी धीरे धीरे मेरे लिंग को हिलाती रही।

मैंने विजय कहा कि इसके बारे में मम्मी को नहीं बताना। उसने हामी में सिर हिला दिया।
मेरा दिल विमी को चोदने को बेक़रार था, मैंने विमी का हाथ हटा कर विजय को एक आना देते हुए कहा- जा संतरे वाली गोली ले आ। वह गोलियों का शौक़ीन था, पैसे लेकर तुरंत चला गया।

उसके जाते ही मैंने दरवाजा बंद कर लिया और विमी के पीछे जाकर उसका सूट उठा दिया। उसके दोनों उरोज बाहर झांकने लगे, बहुत ही गठीले और गोल थे, मैं उन्हें रगड़ने लगा।
मैंने विमी के हाथ में अपने लिंग थमा दिया, वह धीरे धीरे सहलाने लगी, उसकी शर्म अब कम हो गई थी और वह मेरे साथ पूरा सहयोग कर रही थी।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

थोड़ी देर उसके उरोज मसलने के बाद मैंने उसकी सलवार खोल कर नीचे खिसका दी, कुत्ता स्टाइल में उसके पीछे से लिंग योनि में डाल दिया, उसके दोनों हाथ मेज पर टिके थे और मैं पीछे से उसे जोर जोर से चोदने लगा।
उसे भी मजा आ रहा था, वह अपने चूतड़ आगे पीछे कर लिंग को सही जगह पर टच करवा रही थी।

आज पहली बार से भी ज्यादा मजा आ रहा था, थोड़ी देर में मेरा छूट गया, मैंने थोड़ी देर लिंग उसकी योनि में ही रखा और पीछे से उसके स्तन मसलता रहा।
फिर मैंने अपना पायजामा ऊपर कर लिया, विमी ने भी अपने कपड़े ठीक कर लिए, मैंने धीरे से दरवाजा खोल दिया, वह नीचे चली गई।
इस तरह अगले कुछ दिनों में मैंने दो तीन बार और विमी के साथ सेक्स किया। उन दिनों ओरल सेक्स के बारे में नहीं पता था वरना उसके मुंह में लिंग डाल कर और उसकी योनि को चाट कर और भी मजे लेता।

तीन चार दिन बाद उसके पिता छुट्टियों में उसे घर ले जाने आ गए। छुटियों के बाद मैं आगे कॉलेज की पढ़ाई करने इंदौर चला गया। इस तरह विमी के साथ का अल्प मिलन समाप्त हो गया।

पर आज सोच कर हैरानी होती है कि हम इतना आगे बढ़ गए पर कभी इस बारे में कोई बात नहीं करते थे। हमारे तन ही एक दूसरे की जरूरतों को समझते हुए आगे बढ़ते गए और अंजाम तक पहुंच गए।
विमी ने कभी भी यह अहसास नहीं करवाया कि वह मुझे चाहती है।

वे दिन सदैव याद रहेंगे।
विजय भी बड़ा होकर पिशाब निकालने वाली कहानी के बारे में क्या सोचता होगा, कह नहीं सकता।
[email protected]