पड़ोसी अंकल का प्यार पाकर चुद गयी

पोर्न अंकल सेक्स कहानी मैंने अपनी अन्तर्वासना के कारण एक गैर मर्द से अपनी चूत चुदाई पर लिखी है. मेरे पड़ोस में एक अंकल रहने आये. वे मुझे अच्छे लगे.

यह कहानी सुनें.


दोस्तो, मैं अक्सर अन्तर्वासना पर कहानियां पढ़ती रहती हूँ, आज मैं अपनी आपबीती पोर्न अंकल सेक्स कहानी लिखना चाहती हूँ.

मेरा नाम चांदनी है, प्यार से सभी मुझे चंदा कह कर बुलाते हैं.
मैं 29 वर्ष की एक शादीशुदा महिला हूँ. मेरे पति काफी हैंडसम हैं और मेरा एक दो साल का बेटा है.

मेरा वैवाहिक जीवन सुखमय चल रहा है. मेरे पति एक प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं.

मैं पति और बच्चे के साथ किराए के घर में रहती हूँ.
मेरी मकान मालकिन लगभग 45 साल की एक महिला हैं, जिनके पति कुछ साल पहले ही स्वर्गवासी हो गए थे.
उनका एक बेटा बाहर नौकरी करता है.

यहां तक तो सब ठीक था किंतु मेरे बगल वाले फ्लैट में एक महाशय जिनका नाम मोहन है, किराए पर रहने आए.
मोहन बाबू थे तो शादीशुदा … किन्तु यहां वो अकेले ही रहते थे और सरकारी नौकरी करते थे.

मोहन बाबू देखने में बहुत ही आकर्षक लगते थे.
उनकी उम्र लगभग 40 साल की लगती थी. अक्सर वो मेरे पति से बातचीत करते थे.

फिर धीरे धीरे मोहन बाबू मुझसे भी कुछ इधर उधर की बातें करने लगे थे.
आते जाते जब भी उनसे मेरी नज़र मिलती, वो मुस्करा देते थे तो मैं भी व्यवहारिक रूप से मुस्कुरा देती थी.

ऐसे ही धीरे धीरे लगभग 6 माह बीत गये.
इधर मैं नोटिस कर रही थी कि वो किसी न किसी बहाने मुझे देखते रहते थे.
उनकी आंखों को मैं समझ पा रही थी, उनका देखना अब सामान्य नहीं था फिर भी पता नहीं क्यों मुझे उनका देखना और उनसे बातें करना अच्छा लगता था.

एक तरह से कहूं तो मन ही मन मैं उनको चाहने लगी थी किन्तु लोकलाज के कारण मैं अपनी सीमा में ही रहती थी.

यहां मैं एक बात बताना चाहती हूं कि मेरे पति जब डयूटी चले जाते थे तो मैं मकान मालकिन, जिन्हें आंटी कहती थी, के साथ बैठ गपशप करके समय बिताती थी.
धीरे धीरे आंटी से मेरी हर तरह की बातें होने लगी थीं.

यहां तक कि वो मेरे और मेरे पति के बीच के अंतरंग बातों को भी कुरेद कुरेद कर सुनती थीं.

शायद उनकी विधवा की जिन्दगी में सेक्स का सुख पाना नहीं बचा था, जिस कारण वो मेरे साथ सेक्स की बातों से रस लेकर अपनी कामोत्तेजना को ठंडा कर लेती थीं.
मैं उनकी इस बात को समझती थी तो कभी कभी मैं उनके जिस्म को छेड़ कर उन्हें खुश करने की कोशिश करती रहती थी.

हालांकि मेरा उनके साथ लेस्बियन सेक्स करने का कोई इरादा नहीं था.
मगर तब भी मुझे आंटी के साथ छेड़खानी में मजा आने लगा था.

एक दिन मैं आंटी के साथ किसी गैर मर्द को लेकर बात करने लगी.
आंटी भी मूड में आ गईं.

मैंने मौक़ा देख कर आंटी के सामने मोहन बाबू की बातें करना शुरू दिया.
आंटी को कसम देकर उनका देखना, उनके प्रति मेरा आकर्षण सभी कुछ बातें बता दीं और दुबारा से वादा लिया कि वो किसी से कुछ नहीं कहेंगी.

आंटी ने भी हां कहा कि इसमें गलत क्या है, यदि तुम भी उनको चाहती हो, तो खुल कर देख कि मोहन बाबू कहां तक बढ़ते हैं.
मैंने हंस कर बात टाल दी लेकिन आंटी की बातें मुझे उत्साहित कर गईं.

उधर मोहन बाबू केवल मुझे देखने, बात करने और मुस्कुराने तक ही सीमित थे, आगे बढ़ने की उनकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी.

इधर मेरे पति की अपने काम के प्रति बढ़ती व्यस्तता ने सेक्स को पीछे छोड़ दिया.
अब वो भी मेरे साथ हफ़्तों तक चुदाई नहीं करते थे.

उधर पति की सेक्स में बढ़ती कमी और इधर मोहन बाबू की मादक नजरों ने मेरी प्यास को बढ़ाना शुरू कर दिया.

मेरी चूत में लंड के लिए खुजली बढ़ने लगी थी.
अब मुझे किसी भी हाल में लंड चाहिए था और वो भी मोहन बाबू का लंड चाहिए था.

मेरे पति का नियम है कि वो ठीक 8 बजे सुबह ही डयूटी पर निकल जाते और वापस आने का कोई समय नहीं था.
तब भी शाम को सात से पहले कभी नहीं आए थे.

उधर मोहन बाबू सुबह 10.30 के बाद काम पर जाते थे.

मैं अब मन ही मन कुछ आगे करने की प्लानिंग करने लगी.

जैसे जैसे दिन निकल रहे थे, मेरी चूत में मोहन बाबू के लंड की प्यास बढ़ती ही जा रही थी.

एक दिन पति के जाने के बाद मैं नहाने गयी.
अभी मैंने अपने ऊपर दो चार मग पानी डाला ही था कि नल में पानी आना बंद हो गया और संयोग ऐसा कि बिजली भी गोल थी.
पानी को लेकर बड़ी समस्या हो गई थी.

मैं नंगी बाथरूम में अपनी सोच में पड़ी थी कि क्या करूं. उसी बीच मेरा हाथ मेरी चूत पर चला गया.

चूत पर हाथ गया तो चूत भभक उठी.
मेरे मन में कुछ खुराफात जागने लगी और मैंने नंगी ही बाहर निकल कर मोहन बाबू को फोन कर दिया.

उधर से मोहन बाबू की आवाज आई- हैलो कौन?
मैंने इठलाते हुए कहा- मैं बोल रही हूँ.

मोहन बाबू ने जब महिला की आवाज सुनी तो एकदम विनम्र हो गए- जी, मैं पहचान नहीं पाया. आप कौन बोल रही हैं मैडम!

मुझे बड़ी हंसी आई.
मैं नंगी तो थी ही और मेरे कान में मेरी चाहत मोहन बाबू की आवाज लंड की मस्ती घोल रही थी.

मैं एक हाथ में फोन और दूसरे हाथ को अपनी चूत में फेरती हुई मोहन बाबू के मजे लेने लगी.
मैंने कहा- अरे आप मुझे पहचान नहीं पाए? ये तो बड़ी अजीब बात है.

मोहन बाबू असमंजस में थे कि कौन सी महिला उनकी ले रही है.
मैंने इसी तरह से मोहन बाबू के साथ कुछ देर खेल खेला और उनसे कहा- अरे मैं आपकी पड़ोसन बोल रही हूँ. आप मुझसे बात करते हैं तब भी मेरी आवाज नहीं पहचान आ रहे हैं.

तब जाकर मोहन बाबू को एकदम से करंट सा लगा और वो चहक उठे- अरे चंदा जी आप … आपने मुझे फोन किया है. मैं समझ ही नहीं पा रहा था कि कौन बोल रहा है. क्षमा कीजिए. अब बताएं कि मुझे नाचीज को कैसे याद किया है?

उनकी इस भाषा को सुनकर मेरे मन में गुदगुदी होने लगी कि मोहन बाबू तो फिसलने के मोड में आ गए.

दरअसल मेरे पास उनका मोबाइल नंबर था क्योंकि मेनगेट को रात बिरात खोलने हेतु हम सबने एक दूसरे का नंबर ले रखा था.
मेरे पति ने मोहन बाबू का नम्बर डायरी में लिख रखा था, जो मुझे मिल गया था.

मैंने उनसे कहा- मोहन जी, प्लीज़ एक बाल्टी पानी दे दीजिए, मेरे बाथरूम में पानी खत्म हो गया है. मुझे नहाना है.
तो मोहन बाबू हंस कर बोले- हां हां क्यों नहीं. अभी लाता हूँ.

मोहन बाबू ने पानी की बाल्टी मेरे दरवाजे पर लाकर रखी और आवाज़ दी.

मैंने उनसे पानी की बाल्टी बाथरूम के पास रख देने का अनुरोध किया.
उस समय मैं अर्धनग्न हो गई थी यानि मैं पूरी नंगी होने की जगह ब्रा पैंटी पहन ली थी और कमर के ऊपर तौलिया लपेट ली थी.

मोहन बाबू जैसे ही बाल्टी लेकर अन्दर आए.
मैं अपने फ्लैट के दरवाजे को सटाकर खुद दरवाजे से सट कर खड़ी हो गयी.
मेरी सांसें तेज तेज चल रही थीं … मन में ऊहापोह थी कि कहीं मोहन बाबू ने मुझे नकार दिया तो मेरी बड़ी बेइज्जती हो जाएगी.

ये मेरे लिए शुक्र की बात थी कि मोहन बाबू ने मुझे देख कर मुस्कान बिखेर दी.
उनको मेरे इस तरह से खड़े होने से सिग्नल मिल चुका था.

वो धीरे से मेरे पास आए और सामने से मुझे देखने लगे.
उनकी नजरें मेरी आंखों में थीं. मेरे दोनों कबूतर उठ बैठ रहे थे.

अचानक से मोहन बाबू ने अपने हाथ आगे बढ़ाए और मेरे दोनों हाथ पकड़ लिए.
वो मुझे एकटक देखते रहे.

जब मैं कुछ नहीं बोली तो उन्होंने मेरे हाथ पकड़े पकड़े अपने होंठ मेरे होठों पर रख दिए और किस करने लगे.
मैं वासना में मदहोश हो चुकी थी, मेरी कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था.

इसी बीच मेरे बदन का तौलिया कब नीचे गिर गया, कुछ पता ही नहीं चला.
अब मैं केवल ब्रा और पैंटी में उनके सामने थी और वो मुझे बेतहाशा चूमे जा रहे थे.

वो जान गए थे कि मैं 6 माह से इस दिन के इंतजार में थी.
उनका इन्तजार भी खत्म हो गया था.

फिर वो धीरे से बोले- कैसा लग रहा है?

मैं भी कुछ बोलना चाहती थी किन्तु सांसें तेज चल रही थीं, धड़कन तेज थी.
मदहोशी की अवस्था में मुँह से शब्द नहीं निकल पा रहे थे.

तभी मोहन बाबू ने मुझे बिस्तर पर चलने का इशारा किया ‘कमरे में चलें?’
मैंने कुछ नहीं कहा और उनका हाथ पकड़ कर कमरे की तरफ बढ़ गई.

हम दोनों बेडरूम में आ गए.
मैं बेड पर लेट गयी.

मोहन बाबू मेरी ब्रा को खोल मेरी चूचियों को जीभ से चाटने लगे.
मैं पूरी तरह से गर्म हो गयी थी, मुँह से कुछ आह आह की सिसकारियां आने लगी थीं.

मेरी चूत पूरी तरह गीली हो गयी थी.
अब मन यही हो रहा था कि कब मोहन बाबू अपना लंड मेरी चूत में डाल दें और मुझे चोदना शुरू करें.

मोहन बाबू मरी रसभरी चूचियों को चाटते चूसते नीचे आ गए. वो मेरे पेट और नाभि को चाटने लगे.
फिर उन पोर्न अंकल ने मेरी पैंटी को खींच कर उतार दिया और अपनी जीभ मेरी चूत के अगल बगल घुमाने लगे.

मेरे पति मुझे चोदते जरूर थे किंतु उन्होंने कभी भी मेरी चूत को जीभ नहीं लगाई थी.
यह मेरे लिए बिल्कुल नया अनुभव था.

मोहन बाबू मेरी चूत को जीभ से चाटने लगे और बीच बीच में कसके चूस लेते थे.

उनके खींच कर चूत चूसने से मेरी तो जान ही निकल जाती थी.

कुछ देर बाद मुझमें भी हिम्मत आ गयी थी.
मैं उठ कर मोहन बाबू के लोवर के ऊपर से उनके लंड पर हाथ रख सहलाने लगी.
उन्होंने लोवर उतार दिया.

फिर मैंने उनकी अंडरवियर खींच कर नीचे कर दी.
ओह माय गॉड … इतना लंबा और मोटा लंड…!!

मैंने पहली बार इतना हब्शी लंड देखा था.
मेरे पति का भी लंड बड़ा है, किंतु इतना लम्बा मोटा नहीं है.
मुझे लगा कि ये अंकल सेक्स का पूरा मजा देंगे मुझे!

मैंने मोहन बाबू के लंड को हाथों से थोड़ी देर सहलाया.

फिर मोहन बाबू ने मुझे बेड पर लिटाया और 69 की पोजीशन में आकर चूत चाटने लगे.
मैं भी उनके लंड को मुँह में लेकर चूसने लगी.

जब मैं लंड को चाटती, तो वो भी चूत को चाटते … और जब मैं कस कर लंड को चूसती, तो वो भी चूत को कसके चूसने लगते.
क्या बताऊं … बहुत ही मज़ा आ रहा था.

दस मिनट चूत चूसने के बाद अब वो उठे और सीधे मेरे ऊपर आकर लेट गए.
मुझे किस करते हुए मोहन बाबू ने अपना लंड चूत पर सैट कर दिया और हल्के हल्के से लंड आगे पीछे करने लगे.

फिर दोनों हाथों से मेरी चूचियों को कसके दबाया और मुँह को मुँह में लेकर एक मंज़े हुए खिलाड़ी की तरह एकाएक पूरी ताकत से अपना मोटा लंड, चूत में ठोक दिया.

मुँह बंद होने से मेरी आह की आवाज तक बाहर नहीं आ सकी, मैं बस तड़फ कर रह गई.

उसके बाद मोहन बाबू लंड आगे पीछे करके मुझे मस्त चोदने लगे.
मेरे पूरे बदन में आग लगी थी, मैं भी चूत उछाल उछाल कर चुदाई का मज़ा ले रही थी.

लगभग 10 मिनट तक चुदाई के बाद मुझे लगा कि अब मैं झड़ने वाली हूँ, तभी वो भी बोले कि अब मैं छूटने वाला हूँ.
तो मैं बोली- मैं भी …

फिर उन्होंने एकाएक स्पीड बढ़ा दी.
पोर्न अंकल सेक्स से मैं झड़ गयी और उनका भी गर्म गर्म ढेर सारा वीर्य मेरी चूत में भर गया.

मुझे ऐसी चुदाई का मज़ा कभी नहीं मिला था.
सच में बहुत आनन्द आया.

मोहन बाबू लंड से माल झड़ जाने के बाद जल्दी से मेरे ऊपर से उठे और जल्दी से अपने कपड़े पहन कर निकल गए.
मैं मुस्कुराती हुई महाने बाथरूम में चली गयी.

दोस्तो, मुझे लगता है कि यदि मोहन बाबू मुझे नहीं चोदते तो जीवन के एक सुख से मैं अनजान ही रहती.
खैर अब तो लगभग रोज ही मैं मोहन बाबू से चूत चुसाई का मजा और चुदाई का मज़ा लेने लगी.

आपको मेरी पोर्न अंकल सेक्स कहानी कैसी लगी, जरूर बताईएगा.
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