ए रियल लव स्टोरी कॉलेज में पहले साल की पढ़ाई के लिए आये एक लड़के और लड़की की है. दोनों एक दूसरे को पसंद करते थे पर अपनी चाहत कह नहीं पा रहे थे.
कहानी के पहले भाग
कॉलेज में पहले प्यार का खुमार
में आपने पढ़ा कि मैं अपनी क्लासमेट और दोस्त को चाहने लगा था. मेरी इस चाहत को मेरी एक अन्य दोस्त ने पहचान लिया.
अब आगे ए रियल लव स्टोरी:
और संजना ने आकांक्षा से पूछ ही लिया- यार आकांक्षा तुम्हारे और विशाल के बीच में कुछ चल रहा है क्या?
आकांक्षा- नहीं, तो ऐसा कुछ नहीं है।
संजना- बनो मत, देखो विशाल का नाम आते ही देखो तुम्हारे गाल कैसे टमाटर की तरह लाल हो गए हैं।
आकांक्षा थोड़ा शर्माते हुए- यार किसी को बताना मत, मुझे राहुल अच्छा लगता है।
संजना आकांक्षा की चिकोटी काटते हुए- बस अच्छा ही लगता है या फिर प्यार भी है?
आकांक्षा अपना चेहरा हथेलियों से छुपाते हुए- प्यार भी है।
संजना- ओ हो … तुम तो बड़ी ही छुपी रुस्तम निकली।
आकांक्षा- विशाल को बिल्कुल मत बताना! पता नहीं वह कैसे रिएक्ट करेगा।
संजना- अच्छा बाबा नहीं बताऊंगी लेकिन मुझे लगता है कि विशाल भी तुम्हें प्यार करता है।
आकांक्षा- अब तुम मेरे मजे ले रही हो।
संजना- अरे यार सच्ची। मैंने खुद विशाल से इस बारे में पूछा तभी मैं तुमसे पूछने आई हूं अगर फीलिंग्स म्यूच्यूअल है तो मैं तुम दोनों की हेल्प कर सकती हूं।
आकांक्षा- नहीं, तुम इस बारे में कुछ मत करना मैं कल खुद विशाल से इस बारे में बात करूंगी और शायद उसे सरप्राइज़ भी मिले।
मैंने उसी दिन संजना से आकांक्षा की फीलिंग उसके बारे में पूछा लेकिन संजना ने मुझसे झूठ बोल दिया क्योंकि उन दोनों का इरादा तो कुछ और ही था जिससे मैं बेखबर था।
अगले दिन आकांक्षा कॉलेज नहीं आई जिससे संजना को भी थोड़ा झटका लगा क्योंकि उसने संजना को बोला था कि वो आज मुझसे अपनी फीलिंग शेयर करेगी और सरप्राइज भी देगी।
उस दिन करीब 10-00 बजे लेक्चर के बीच में आकांक्षा का एक मैसेज आया जिसमें उसने लिखा था कि उसकी तबीयत खराब है और घर पर कोई नहीं है क्या तुम मेरी थोड़ी मदद कर सकते हो।
मैं दौड़ा-दौड़ा आकांक्षा के घर पहुंचा।
मैंने डोरबेल बजाई तो आकांक्षा ने दरवाजा खोला।
आकांक्षा को देख कर तो नहीं लग रहा था कि वह बीमार है।
मैं आश्चर्य से बोला- तुम तो बीमार थी ना?
आकांक्षा- हां वो थोड़ा सर दर्द था। तुमसे जरूरी बात भी करनी थी इसलिए तुम्हें घर बुलाया।
मैं- हां तो कहो क्या ज़रूरी बात थी?
आकांक्षा- पहले घर के अंदर तो आओ। बोलो क्या लोगे?
मैं- कुछ भी ले आओ।
वो मेरे लिए एक कॉफी और पेस्ट्री लेकर आई।
मैं फिर बोल पड़ा- अब तो बताओ क्या बात है?
शायद वो प्यार का इज़हार करने में झिझक रही थी लेकिन मैं इस बात से बेखबर था।
कहीं से हिम्मत जुटा कर उसने मेरी आंखों में आंखें डाली, मेरे हाथ अपने हाथो में थाम लिए।
यहां तक मैं समझ चुका था वो क्या ज़रूरी बात थी लेकिन पक्का नहीं पता था पर अहसास हो चुका था।
उसने मासूम चेहरा बनाते हुए मुझसे कहा– विशाल, आई रियली रियली लाइक यू. यू आर द फर्स्ट पर्सन हू हैज़ टच्ड माय हर्ट एंड सोल. एंड आई नो यू आल्सो लव मी.
इतना कहकर वो मेरे गले लग गई।
मैंने भी उसे अपनी बांहों में भर लिया और उसके कान में हल्के से फुसफुसाते हुए कहा– आई लव यू टू.
मेरा इतना कहते ही उसकी बांहों की गिरफ्त और तेज हो गई।
ऐसा नहीं था कि आकांक्षा और मैं पहली बार गले मिले थे लेकिन इस बार अहसास अलग था.
पहले हम सिर्फ दोस्त के नाते ही गले लगा करते थे, आज हम प्रेमी बन चुके थे और एक दूसरे की बांहों में घुल जाना चाहते थे।
वो अपनी बांहों का घेरा मेरे गले में डाले हुए थी।
मेरा दायां हाथ उसकी ऊपरी कमर को घेरे हुए था और बायां हाथ उसकी निचली कमर को घेरे हुए था।
मेरे हाथों को बहुत ही कोमल महसूस हो रहा था।
अगर आपने कभी किसी नवजात बच्चे की हथेलियों में अपनी उंगली रखी हो तो जितना कोमल तब महसूस होता है मुझे भी आकांक्षा की कमर उतनी ही कोमल महसूस हो रही थी।
मैंने अपने होंठ उसके गले और कंधे के बीच लगाए हुए थे।
हम दोनों करीब 10 मिनट ऐसे ही बिना हिले एक दूसरे में समा जाना चाहते थे।
मुझे मेरी छाती पर उसकी धड़कने साफ महसूस हो रही थी जो शुरू में तेज थी लेकिन बाद में सामान्य होती चली गई।
इन 10 मिनट में मैंने अपनी आने वाली जिंदगी आकांक्षा के साथ बिताने की सोच ली थी।
शायद आप पहले पहले इश्क में ऐसा कर बैठते हो।
अब आकांक्षा ने फिर मेरी आंखों में आंखें डाली और एक अंगूठा मेरे निचले होंठ पर फिराते हुए अपने होठों के बीच में मेरा होंठ रख लिया और दबाते हुए मेरे होंठों को चूम लिया।
हम दोनों की आँखें अपने आप बंद हो गई थी।
मैं आकांक्षा की गर्म सांसें अपने चहरे पर महसूस कर रहा था।
उसने फिर मेरे दूसरे होंठ के साथ भी यही किया।
अब मेरी बारी थी प्रतिक्रिया देने की!
मैंने आकांक्षा की दोनों बंद आंखों को बारी बारी चूम लिया।
मेरी इस प्रतिक्रिया से वो सिहर उठी।
मैं उसकी नाक पर चूमते हुए उसके निचले होंठ को चूमने लगा।
अब हम दोनों एक दूसरे को चूमते हुए एक दूसरे के बदन को सहला रहे थे जिससे की माहौल थोड़ा गरम हो गया था।
मैंने उसकी गर्दन को चूमना शुरू कर दिया था जिससे के उसके मुंह से “ईशशश” जैसी आवाज़ें निकल रही थी।
अब मैं उत्तेजित होने लगा था जिसकी गवाही मेरा सख्त होता हुआ लंड देने लगा।
हम दोनों एक दूसरे के होंठों को बेतहाशा चूमने लगे। मेरा एक हाथ अपने आप आकांक्षा की गर्दन पे चला गया और उसके होंठों को चूसने लगा।
मैंने अपनी जीभ उसके होठों पे फिरा दी जिसकी प्रतिक्रिया आकांक्षा ने भी अपनी जीभ से दी।
मेरा हाथ उसकी गर्दन से होते हुए उसकी छाती पे आ रुका और उसके बूब्स दबाने लगा।
आकांक्षा मुझसे अलग हो गई।
मैं- क्या हुआ? मैंने कुछ गलत किया?
आकांक्षा- नहीं, मुझे पीरियड्स आए हुए है, और इसके बाद होने वाली चीजों के लिए में अभी तैयार नहीं हूं।
मैंने समझते हुए उसके माथे को चूम लिया।
वो मेरे गाल को चूम कर मेरी बांहों में लेटी रही।
दोपहर का एक बज चुका था।
मैंने आकांक्षा से जाने के लिए कहा तो उसने कहा- खाना खाकर जाना!
और मैं मान गया।
आकांक्षा ने अपने हाथों से खाना बनाया था और बड़े प्यार से खिलाया भी।
दोस्तो, जब कोई लड़की आपको सच्चा प्यार करती है तो वो आपकी हर छोटी से छोटी चीज़ का खयाल रखती है।
ये मुझे आकांक्षा से हुए प्यार में पता चला।
खाना खाने के बाद आकांक्षा मुझे छोड़ने के लिए दरवाजे तक आई और मुझे चूमते हुए कल कॉलेज में मिलने का वादा कर लिया।
मैं सारी रात आकांक्षा के सपने ही देखता रहा, कुछ प्यार भरे भी और कुछ वासना भरे भी!
अगले दिन कॉलेज में जाने की जल्दी थी।
कॉलेज पहुंचा तो सब नया और अलग लग रहा था शायद ऐसा होता होगा पहले प्यार में तो मेरे साथ भी हुआ।
मुझे सबसे पहले संजना मिली और उसने मुझसे पूछा- तुम कल कहां चले गए थे?
मैंने उसे कहा- कहीं नहीं।
उसने चुटकी लेते हुए पूछा– आकांक्षा से बात हुई?
मैं संजना के इस सवाल से सब समझ गया था कि क्या माजरा है और उसने मुझे सब बता दिया।
मुझे ये भी पता चला की आकांक्षा ने इसे सब कुछ बता दिया है जो कुछ भी हमारे बीच हुआ था।
क्योंकि संजना को पता था तो राहुल को भी पता चल गया था।
आकांक्षा भी कॉलेज पहुंच गई थी. उसने मुझे देखते ही गले लगा लिया मैने भी उसके माथे को चूम लिया।
संजना ये सब देख कर बोल पड़ी– अरे कंट्रोल कर लो थोड़ा!
और मुस्कुरा दी।
मैं भी बोल पड़ा– और तुम और राहुल जो दो जिस्म एक जान हुए रहते हो उसका क्या?
संजना ने चिढ़ते हुए कहा– तुम भी हो जाओ दो जिस्म एक जान … किसने रोका है।
इस पर आकांक्षा और मैं एक दूसरे की तरफ मुस्कुरा दिए।
अगले तीन दिन तक आकांक्षा अपने पीरियड्स की वजह से परेशान रही तो ज्यादा कुछ हो न सका।
इसी बीच हमारे मिड–सैमेस्टर ब्रेक भी आ गए थे जिसमें एक हफ्ते की छुट्टी मिलती हैं।
मुझे भी अपने घर जाना था क्योंकि घर वालो से मिले 3 महीने से ज्यादा हो गया था।
मैंने यह बात आकांक्षा को बताई तो वो बोली- मेरा यहां पर क्या होगा, मैं अकेले यहां तुम्हारे बिना कैसे रह पाऊंगी?
उसकी यह बात सुनकर मुझे भी उसके लिए बुरा लगा क्योंकि हमारा प्यार शुरू हुए कुछ ही दिन हुए थे और मुझे दूर जाना पड़ रहा था।
मैं उससे बोला- एक हफ्ते की ही तो बात है।
उसने बच्चे की तरह ज़िद करते हुए बोला- मैं नहीं जाने दूंगी तुमको कहीं!
और अपना सिर मेरी छाती में धंसा दिया।
मैं आकांक्षा की इस मासूमियत या कहलो अदा को मना नहीं कर पाया और बोल पड़ा- चलो ठीक है, नहीं जा रहा कहीं।
इस बात पर वो बहुत खुश हुई और मुझे गले से लगा लिया।
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