दर्द-ए-रंडी

दोस्तो, आज मैं आपको एक नई कहानी सुनाने जा रहा हूँ. आशा है आपको पसंद आएगी.

कुछ दिन हुये, हम सब दोस्त बैठे पेग शेग लगा रहे थे कि तभी एक दोस्त ने कहा- यार आज मौसम बड़ा अच्छा, दारू पीने का भी बहुत मज़ा आ रहा है, ऐसे में अगर साथ में एक रंडी चोदने को मिल जाए, तो मज़ा और भी दुगना चौगुना हो जाए.

उसकी बात सुन कर सबके कच्छे टाईट हो गए. हम सब 4 दोस्त थे, मगर 4 में तीन ऐसे थे जो नौकरी पेशा थे, शाम को घंटा दो घंटा तो चल जाता मगर अगर सारी रात बाहर बितानी हो तो फिर घर में भी कुछ ऐसा सॉलिड बहाना होना चाहिए कि हम भी रात घर से बाहर गुज़ार लें और बीवी को शक भी न हो.

तो सबने मिल कर सलाह बनाई कि अगले शुक्रवार यह बहाना बना कर घर से निकलेंगे कि चंडीगढ़ हैड ऑफिस में कोई ज़रूरी काम है, और अपने बॉस को चंडीगढ़ के फाइव स्टार होटल में पार्टी देनी है, इसलिए देर बहुत हो जाएगी, अगर लेट हो भी गए तो अपने दोस्त का घर है वहाँ पे, वहीं पे सो जाएंगे ताकि रात को ड्राइव करने से भी बचा जा सके.

पूरा प्रोग्राम बना कर चारों यार शुक्रवार को दोपहर को ही अपने अपने ऑफिस में आधे दिन की छुट्टी टिका कर निकाल पड़े. एक जगह इकट्ठे हो कर गाड़ी में बैठे और दौड़ा दी गाड़ी चंडीगढ़ को.
दो घंटे के सफर के बाद हम सब चंडीगढ़ नहीं, बल्कि पंचकुला गए, वहाँ पे हमारा एक और दोस्त था, जिसे हमने सारी ज़िम्मेवारी सौंपी थी. वो हमें एक बढ़िया होटल में लेकर गया. दारू हमारे पास थी, वेटर को आते ही 500 रुपए की टिप दी, ताकि वो सिर्फ हमारे हर हुकुम का फौरन पालन करे.
दो रूम बुक थे, हम एक रूम में पहुंचे, पहले बीयर की बोतलें खुली, चिकन, चबेना, रायता, सलाद सब आ गया. मिनटों में ही पूरी महफिल सज गई.

फिर रोहन ने अपना फोन निकाला और किसी से बात की, उसको अपना होटल का नाम और रूम नंबर बताया, फिर हमसे बोला- 15 मिनट में आ रही है.

अभी शाम के 5 बजे थे, तो हम सबने सलाह की कि अभी नहीं करेंगे, पहले सिर्फ एंजॉय करेंगे, ठोकाठाकी रात को डिनर के बाद ही करेंगे.
ए सी को फुल कूलिंग पे चला दिया, टीवी पर गाने लगा लिए. खाने पीने का इंतजाम हमने नीचे फर्श पर ही किया था, ताकि हर कोई खुल्ला होकर आराम से बैठ सके.

अभी हमने एक एक गिलास बीयर पिया ही था कि दरवाजे पे दस्तक हुई. सतीश ने दरवाजा खोला तो बाहर एक 24-25 साल की सुंदर सी लड़की खड़ी थी. उसने पूछा- मिस्टर रोहन?
विजय झट सो बोला- हाँ हाँ, रोहन आइये.
वो अंदर आ गई.
उसे देखते ही सभी यार दोस्त उठ कर खड़े हो गए.

24 साल की मंजीत नाम की वो लड़की, अभी उसकी शादी नहीं हुई थी, किसी प्राइवेट फर्म में जॉब करती थी. रंग बहुत गोरा, बदन पतला मगर फिर भी भरपूर गदराया हुआ, सपाट पेट, पेट के ऊपर दो उन्नत, गोल मम्मे, पेट के नीचे कटावदार कमर, मजबूत दिखने वाली जांघें. कद कोई 5 फीट 6 इंच. लंबी सी चोटी जो उसके चूतड़ों तक झूल रही थी. गालों पर गुलाबी रंगत. सफ़ेद कुर्ता और हरे रंग की लेगिंग, हरे रंग की ही चुनरिया.

रूम के अंदर आ कर वो हमारे सामने आई, तो हम सब ने हाथ मिला कर उसका अभिवादन और स्वागत किया. उसने अपनी सेंडिल उतारी और हम सब के साथ ही बैठ गई.
उसके एक तरफ मैं, दूसरी तरफ विजय, और रोहन और सतीश सामने बैठे थे.

“तो आप लोगों ने पहले ही पार्टी शुरू कर दी.” अपनी मीठी आवाज़ में वो बोली.
हम सब “हे हे हे” करके हंस दिये.

सतीश बोला- दरअसल आपके आने से पहले हम थोड़ा माहौल बना रहे थे और एक एक बीयर से थोड़ी हिम्मत जुटा रहे थे.
वो बोली- अरे आपको हिम्मत की ज़रूरत, आप चार हो, हिम्मत तो मुझे चाहिए, मैं तो अकेली हूँ.

रोहन ने सबके गिलासों को फिर से भर दिया, इस बार एक और गिलास मंजीत का भी था.

हम सबने अपने अपने गिलास आगे बढ़ा कर एक साथ टकराए और ज़ोर से ‘चियर्ज़’ कहा. हमारे साथ मंजीत ने दो तीन बड़े बड़े घूंट भर कर गिलास आधा खाली कर दिया.
रोहन ने कहा- आप बीयर की शौकीन लगती हैं.
मंजीत बोली- बीयर क्यों, कुछ भी लाओ, मैं सब खा पी लेती हूँ. नखरा किसी चीज़ में नहीं करती.

मैंने पूछा- सिगरेट?
वो बोली- हाँ हाँ, क्यों नहीं.
तो सब ने सिगरेट भी सुलगा लीं.

बीयर की जगह अब व्हिस्की ने ले ली. कभी चिकन, कभी टिक्का, कभी पनीर, कभी कुछ तो कभी कुछ आता जा रहा था. ज्यों ज्यों नशा तारी हो रहा था, सब मंजीत से और ज़्यादा खुल रहे थे. पहले तो उस से आप करके बात हो रही थी, फिर तुम और फिर सीधा तू हो गए. मगर वो बहुत सहज थी.

हंसी मज़ाक के माहौल में रोहन बोला- मंजीत, अगर मैं कहूँ तो तुम सिर्फ ब्रा पेंटी पहन कर हमारे साथ ड्रिंक करो, तो करोगी?
वो बोली- अजी हुज़ूर, आपने तो मुझे खरीद लिया है, ब्रा पेंटी क्या, मैं तो बिना कुछ पहने भी आपके साथ ड्रिंक कर सकती हूँ.
हम चारों की तो जैसे बांछें खिल गई.

सतीश बोला- तो फिर उतारो, ये टॉप और लेगिंग.
मंजीत बोली- मगर आप लोग भी तो उतारो.

अगले दो मिनट के अंदर हम सभी यार सिर्फ चड्डी में और हमारे बीच बैठी मंजीत सिर्फ ब्रा और पेंटी में थी. सफ़ेद ब्रा और गुलाबी पेंटी. बगलें, बाजू, टाँगें सब अच्छे से वैक्स की हुई. छोटी सी चड्डी उसने पहनी थी, जिसे देख कर लग रहा था कि इसकी चूत भी बिल्कुल चिकनी होगी.

मैंने उसकी जांघ पर हाथ फेर कर कहा- बहुत चिकनी हो जानेमन.
वो बोली- आपकी जानेमन चिकनी नहीं होगी तो क्या होगी.
‘हाय…’ कह कर सभी यार लोग खुश हो गए.

सतीश ने आगे हाथ बढ़ा कर मंजीत का मम्मा दबाना चाहा मगर उसका हाथ नहीं पहुँच रहा था, तो मंजीत आगे को बढ़ गई, उसने दोनों हाथ आगे टिकाये, जिससे वो घोड़ी वाले पोज में आ गई, तो रोहन और सतीश ने उसके मम्मे दबा कर देखे तो विजय ने उसकी पीठ को सहलाया.
मैंने पीछे से देखा, गुलाबी चड्डी में गोल, मांसल चूतड़. मैंने उसकी गांड को सहलाया. जैसे उसके बदन में बिजली हो कोई, उसके अधनंगे बदन को छूते ही हम सब यारों के लंड टनाटन्न हो गए. सबकी चड्डियाँ ऊपर को उठ गई.
वो बोली- अरे आप सब तो बहुत गरम हो, सब के हीटर चालू हो गए. मैंने उसकी चड्डी एक तरफ हटा कर उसकी गांड के छेद को अपनी उंगली से छू कर कहा- तुम में करंट ही इतना है जानेमन, सब के हीटर तो चालू होने ही थे.

मैंने अपनी उंगली उसकी गांड में डालनी चाही तो उसने रोक दिया- सॉरी सर, मैं पीछे कुछ नहीं करती, जो भी करती हूँ, सामने से करती हूँ.
मैंने उसकी चड्डी ठीक कर दी और वो फिर से बैठ गई.

अब सब के मन में ये सवाल था कि पहले कौन करे. मैंने कहा- मैं तो सबसे लास्ट पारी खेलूँगा, जिसने पहले खेलना हो खेल लो.

मंजीत वहीं कार्पेट पे ही लेट गई. उस अधनंगी लड़की को अपने सामने लेटा देख कर सब ये भूल गए कि ठोका-ठाकी डिनर के बाद करने का प्रोग्राम था.
रोहन ने उसे उठाया और वैसे ही अधनंगी हालत में दूसरे रूम में ले गया. हमारी तो जैसे महफिल से रौनक ही चली गई हो, मगर फिर भी हमने सब आपस में उसके हुस्न की और इधर उधर की बातें करते हुये, अपने पेग का प्रोग्राम जारी रखा.

कोई पौने घंटे बाद रोहन आया, तो फिर विजय चला गया, विजय के बाद सतीश. इसी दौरान 9 बज गए, तो हमने खाना ऑर्डर किया.

हम सब ने तो चड्डियाँ पहन रखी थी, मगर मंजीत बिल्कुल ही नंगी थी. इसलिए उसे सिर्फ कुर्ता पहना दिया गया. अब सिर्फ उसे चोदने वाला मैं ही बचा था. खाने की इतनी भूख तो थी नहीं मगर फिर भी सबने थोड़ा बहुत खा लिया. खाना खा कर सब यहाँ वहाँ बैठ गए, हर कोई मंजीत के बदन और उसके गुप्तांगों को छू कर सहला कर अपनी अपनी ठर्क मिटा रहे थे.
मगर मैंने उसे नहीं छूआ. मुझे ये था कि अगर अभी ज़्यादा छू कर देख लिया, तो कमरे में जाकर सेक्स करने का मज़ा खत्म हो जाएगा.

खाना खाने के बाद भी हम बैठे बातें करते रहे. करीब 10 बजे मैंने कहा- मंजीत, क्या हम चलें?
वो उठ कर खड़ी हो गई- चलो जी, आपको भी जन्नत की सैर करवा लाऊं.

मेरे यारों ने बड़ी खुशी से मुझे विदा किया. दूसरे रूम में जाकर मंजीत बेड पे लेट गई. जांघों तक उसका कुर्ता था, मगर नीचे नंगी गोरी, चिकनी टाँगें चमक रही थी. कुर्ते में से उसके गोल गोल मम्मे भी अपना पूरा आकार दिखा रहे थे.
वो आँखें बंद किए लेटी थी. मैंने उसके पास लेट कर उसके चेहरे पे गिरी उसकी जुल्फें हटा कर पूछा- थक गई क्या?
वो बोली- हाँ थोड़ी सी, तीन तीन मर्द, एक के बाद एक मेरे ऊपर चढ़े हैं. सब कोई कुछ न कुछ खा कर आते हैं. बदन को ऐसे नोचते हैं, जैसे गिद्ध हो. सारा बदन तोड़ कर रख देते हैं.

मैंने कहा- अगर तुम आराम करना चाहो, तो सो जाओ, हम सुबह कर लेंगे.
उसने करवट ली और मेरे सीने पे अपना सर रख दिया, जैसे वो मेरी पत्नी हो, या दिलरुबा हो.
‘नहीं…’ वो बोली- आपका मूड तो अभी है, तो अभी करेंगे.
मैंने पूछा- और तुम्हें जो तकलीफ होगी?
वो बोली- 10 साल हो गए इसी तकलीफ को सहते, अब कोई भी दर्द… दर्द नहीं लगता.

मैंने कहा- मंजीत तुम्हें एक बात बताऊँ, मैं सारी दुनिया से चोरी, सबसे छुपा कर सेक्सी कहानियाँ लिखता हूँ. अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारी कहानी भी लिख सकता हूँ.
वो बोली- अरे नहीं नहीं, मुझे कोई कहानी नहीं लिखवानी है. कल को और कोई पंगा पड़ गया तो.
मैंने कहा- मैं तुम्हारा नाम, स्थान सब बदल दूँगा. और कहानी छापने से पहले तुमको पढ़वा दूँगा, अगर कोई चीज़ तुम्हें गलत लगे तो बता देना, मैं उसे मिटा दूँगा.

उसने पूछा- तो कहानी छपेगी कहाँ पर?
मैंने कहा- कहानी अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज़ डॉट कॉम पर छपेगी, तुम वहाँ से पढ़ लेना.
वो थोड़ा सोच कर बोली- कोई दिक्कत तो नहीं होगी?
मैंने कहा- अगर मैं तुम्हारा नाम मंजीत भी लिख दूँ, तो हिंदुस्तान में कितनी मंजीत हैं, किसी को क्या पता, चंडीगढ़ की जगह, दिल्ली, मुंबई कुछ भी लिख दूँ, किसी को क्या पता!
वो बोली- आप ऐसा करो, पहले आप आज हम सब ने जो किया है, उसकी कहानी लिख कर छपवाओ, जब वो कहानी मैं अन्तर्वासना पर पढ़ लूँगी, तो फिर आपको अपनी कहानी बताऊँगी. पूरी डीटेल में, मैं कौन हूँ, मेरा असली नाम क्या है, मैं क्या करती हूँ, कहाँ रहती हूँ. इस धंधे में मैं कैसे आई, कौन मुझे लेकर आया. अब तक कितने लोगों से मैं सेक्स कर चुकी हूँ, कैसे कैसे लोग मुझे मिले, सब बताऊँगी.

मैंने कहा- ठीक है, तो पहले आज का काम शुरू करें.
मैंने उसकी ठोड़ी पकड़ कर उसका चेहरा ऊपर उठाया, और उसके नीचे वाले होंठ को अपने होंठों में लेकर चूसा, तो उसने अपनी गोरी चिकनी जांघ उठा कर मेरी जांघ पर रखी और अपने घुटने से मेरे लंड को सहलाने लगी.

मैंने भी करवट ली और अपनी जांघ उसकी दोनों जांघों के बीच में फंसा दी, और उसकी चूत पर अपनी जांघ रगड़ी. फूल जैसे मुलायम चूत… होंठ चूसते चूसते मैंने अपनी जीभ उसके मुँह के अंदर डाल दी, जिसे उसने चूस लिया, बल्कि अपने मुँह के अंदर ही खींच लिया और ज़ोर से अपनी सांस छोड़ी, आग जैसे गरम सांस मेरे चेहरे पे लगी तो मेरे अंदर भी उसने कामवासना भड़का दी.

मैंने भी उसका मम्मा पकड़ा और ज़ोर से दबा दिया. उसके मुँह से हल्की सी दर्द भरी सिसकारी निकली, जो शायद उसके मम्मे दबाने के दर्द से निकली थी, मगर वो सिसकारी मेरे मुँह में ही दफन हो कर रह गई.
उसके दर्द की परवाह किए बगैर मैंने उसके दोनों मम्मे पूरे ज़ोर से दबाये और अपनी बालों वाली खुरदरी जांघ से उसकी चूत को रगड़ना जारी रखा. मेरे और उसके जिस्म की डील डौल में बहत फर्क था, मेरे सामने तो वो आधी ही थी, मगर फिर भी मेरे जिस्म के वज़न को बर्दाश्त कर रही थी.
मैंने अपना हाथ उसके कुर्ते में डाल कर उसकी नंगी पीठ के मांस को भी अपनी मुट्ठी में भर भर के नोचा, उसका कुर्ता ऊपर उठा कर उसके मम्मे बाहर निकाले और उसके निप्पल को अपने मुँह में
लेकर न सिर्फ चूसा, बल्कि दाँतों से काट भी खाया.

उसने भी अपना हाथ मेरी चड्डी में डाल कर मेरा लंड पकड़ा हुआ था और ज़ोर ज़ोर से सहला रही थी.

मैंने उसका कुर्ता उतार दिया. रोशनी में उसके दोनों मम्मे लाल हो रखे थे, कुछ मेरे निचोड़ने से और कुछ मुझसे पहले जो तीन धुरंधर आए थे, उनके दबाने से. लाल मम्मे देख कर मुझे कुछ तरस आया, तो मैंने सिर्फ उन्हें प्यार से सहलाया और बड़े आराम आराम से पिया.
फिर मैं उसके मम्मों से नीचे उसके पेट को चूमा, चाटा. कमर के इर्द गिर्द और उसकी जांघों पर अपनी जीभ फिराई.

मैंने पूछा- मंजीत, मैं तुम्हारी ये गुलाबी चूत चाटना चाहता हूँ.
वो बोली- चाट लो, अभी आपके आने से पहले ही धो कर आई हूँ. बिल्कुल फ्रेश है.

मैंने उसकी चूत के दोनों होंठ अपने होंठों में भर लिए. उसने मारे सर को पकड़ लिया और अपनी कमर थोड़ी सी ऊपर को उठाई, शायद उसको मज़ा आया. मैंने सिर्फ उसकी चूत ही नहीं, उसकी गोरी चिकनी जांघें, घुटने, पिंडलियाँ, पाँव, सब को चूमा चाटा.
मेरा तना हुआ कड़क लंड हवा में लहरा रहा था. मैं आगे बढ़ा और उसके सीने पर जा बैठा.

उसको कहने की ज़रूरत नहीं पड़ी, मेरे बैठते ही उसने मेरा लंड अपने हाथ में पकड़ा और मेरे लंड के टोपे को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी. मैंने अपनी कमर चलाई और ज़्यादा से ज़्यादा अपना लंड उसके मुँह में घुसाता गया, वो भी लेती गई.

मगर मुँह छोटा होता है, मेरा पूरा लंड उसके मुँह में अंदर नहीं जा पा रहा था, शायद उसको सांस लेने भी तकलीफ हो रही थी. मैंने कहा- बस और मत चूसो, कोंडोम चढ़ाओ इस पर.
उसने अपने सिरहाने के नीचे से पहले से ही रखे कोंडोम के पैकेट में से एक कोंडोम निकाला और मेरे लंड पर चढ़ा दिया.
मैंने उसके पाँव पकड़े और खींच कर बेड के बीचों बीच लेटा दिया, दोनों टाँगे उसके टखनो से पकड़ कर खोली और अपना लंड बिना छूये ही उसकी चूत पर सेट किया, और एक झटके से उसकी चूत में घुसा दिया.

‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ एक जोरदार आवाज़ उसके मुँह से निकली और चेहरे पर बेहद दर्द के भाव आए.
शायद मेरा लंड उसकी चूत में अंदर जा कर ज़ोर से लगा. मैंने पूछा- दर्द हुआ?
वो बोली- नहीं, कुछ नहीं, वैसे ही, आप करो.
मैंने कहा- यार ऐसे मत करो, अगर दर्द होता है, तो बताओ, ताकि मैं प्यार से करूँ, मैं तुमको दर्द नहीं मज़ा देना चाहता हूँ.
वो बोली- अरे नहीं सर, मैं यहाँ मज़ा लेने नहीं, आपको मज़ा देने आई हूँ, आप का जैसे दिल करे, आप करो.

मुझे उसकी दरियादिली बहुत अच्छी लगी. मैंने अपनी कमर हिला हिला कर उसको चोदना शुरू किया.
मैंने पूछा- मंजीत, पहली बार कब तुमने सेक्स किया था.
वो बोली- जब मैं कॉलेज में थी, तो अपनी बॉय फ्रेंड के साथ किया था.

मैंने कहा- मगर तुमने अभी थोड़ी देर पहले कहा कि तुम 10 साल से ये काम कर रही हो.
वो बोली- अपनी मर्ज़ी से तो मैंने अपनी बॉय फ्रेंड से ही किया था. 10 साल पहले तो कोई मजबूरी थी मेरी, आपको फिर कभी बताऊँगी, उस वजह से मजबूरी में किया था, उसको मैं नहीं गिनती.
इस दौरान मैंने उससे और भी बातें की, और थोड़ी देर चुदाई करने के बाद मुझे थोड़ी सांस चढ़ी तो मैंने उसको ऊपर आने को कहा.
मैं नीचे लेट गया और वो मेरे ऊपर आकर बैठ गई. मेरा लंड अपने हाथ से पकड़ कर अपनी चूत में ले लिया और ऊपर नीचे हो कर मुझे करने लगी.

उसकी रफ्तार बहुत धीमी थी, मगर हर बार ऐसा लगता था, जैसे वो मेरे लंड को अंदर तो एकदम आराम से लेती है, मगर बाहर निकालते वक़्त जैसे अपनी चूत को टाइट कर लेती है.
उसका तो पता नहीं, मगर इस से मुझे बहुत आनन्द मिल रहा था.

कुछ देर ऐसे चुदाई करके मैंने फिर उसको घोड़ी बनने को कहा. जब वो घोड़ी बनी तो मैंने उसके पीछे से अपना लंड उसकी चूत में डाला और बजाए उसके कंधे पकड़ने के मैंने उसकी बालों की चोटी अपने हाथ में पकड़ ली, और उसके बाल खींच कर मैंने उसकी चुदाई की.
बेशक उसको दर्द हो रहा था, मगर वो फिर भी नहीं बोली.

मैंने कहा- आज आया घोड़सवारी का मज़ा. नीचे घोड़ी और हाथ में लगाम.
वो सिर्फ हंसी, मगर उसकी हंसी भी नकली सी लगी.

घोड़ी बना कर मैंने उसे खूब चोदा. काफी देर की चुदाई के बाद मुझे लगा कि मुझे अब अपना माल गिरा देना चाहिए. मैंने कहा- मंजीत मैंने तेरे मुँह में अपना पानी छुड़वाना चाहता हूँ.
वो बोली- ठीक है, मगर मैं पीती नहीं.
मैंने अपना लंड उसकी चूत से निकाला, तो वो मेरी तरफ घूमी, उसकी आँखों में हल्का पानी सा नज़र आया मुझे.

उसने मेरे लंड से कोंडोम उतार दिया, तो मैं भी बेड के साथ पीठ टिका कर बैठ गया. उसने फिर से मेरा लंड अपनी मुँह में ले लिया और लगी चूसने.
मैंने उसका सर पकड़ा और उसके सर को आगे पीछे करके उसका मुँह चोदने लगा. मैं तो चाहता था कि मेरा पूरा लंड उसके मुँह में घुस जाए. उसके चेहरे पर दर्द के साफ भाव थे, मगर मुझे सिर्फ अपना पानी निकालने तक मतलब था.

मेरा लंड शायद उसके गले में जा कर लग रहा था. मैं तब तक नहीं हटा, जब तक मेरा माल नहीं गिरा, और जब गिरा तो मैंने उसका सर अपने पूरे ज़ोर से खींच कर अपने पेट से लगा लिया.
मेरा सारा लंड उसके मुँह में घुस गया था, और मेरा माल उसके मुँह के अंदर झड़ रहा था. जब तक पूरा माल नहीं झाड़ा मैंने उसका चेहरा नहीं छोड़ा, और जब उसका चेहरा छोड़ा तो मैंने देखा, उसका मुँह लाल हो रखा था, आँखों से आँसू टपक रहे थे. सांस रुक गई थी.

उसके मुँह से मेरा लंड निकलते ही वो अपना हाथ मुँह पर रख कर बाथरूम की तरफ भागी, और मैं बेड पर चित्त लेट गया.

थोड़ी देर बाद वो फ्रेश हो कर आई, मैं वैसे ही लेटा था. वो मेरे ऊपर ही लेट गई, और बोली- और भी कोई आएगा क्या?.
मैंने कहा- तुम में अब भी इतनी हिम्मत है कि और मर्दों को झेल लोगी.
वो बोली- मैंने एक साथ 10-10 मर्द झेले हैं, 2-4 से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.

मैं सोचने लगा, यार बेचारी कितना दर्द सहती है, अपना जिस्म बेचती है, तब कहीं जा कर बेचारी को कुछ पैसे मिलते हैं.
सच है, कोई इनका दर्द नहीं समझता.

मैंने अपनी चड्डी पहनी और वापिस अपने दोस्तों वाले रूम में आ गया.

मुझे देखते ही सतीश बोला- आ गया तू, बड़ा टाइम लगा कर आया, चल अब मैं जाता हूँ, फिर से!
और वो दौड़ता हुआ दूसरे रूम में चला गया.

मगर मेरी जितनी भी पी हुई थी, सब उतर चुकी थी.
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