और वो चली गई- भाग 1

मेरी कहानी
कॉलेज गर्ल की चुदाई की कहानी हिंदी में
को पढ़कर किसी पाठिका ने यह कहानी भेजी है, आप भी पढ़ें और आनन्द लें!
मंजू शर्मा

मेरा नाम साबिया है. निकाह को 7 साल हो गए है. मैं और मेरे पति इंदौर, मध्य प्रदेश में एक ही बैंक में जॉब करते हैं लेकिन हमारी ब्रांच अलग-अलग है. वो सीनियर मैनेजर हैं और मैं मैनेजर. निकाह से पहले मैं ग्वालियर में थी और वो भोपाल में.

एक बार मेरी एक महीने की ट्रेनिंग थी और मुझे भोपाल में ही रहना था. नियत दिन और समय पर मैं भोपाल पहुँच गई. और भी कई शाखाओं से लोग आये हुए थे. बैंक ने 2 प्राइवेट गेस्ट हाउस बुक कर रखे थे और उनमें हर कमरे में 2-2, 3-3 लोगों को एडजस्ट किया था. मेरे कमरे में भी शेफाली नाम की एक लड़की थी जो झाँसी से आई हुई थी.

हमारे 3 इंस्ट्रक्टर थे और एक प्रोग्राम को-ऑर्डिनेटर थे जिनका नाम शहजाद है, और वो अब मेरे पति हैं. बहुत ही खुशनुमा माहौल था, 2 दिन में ही सभी घुलमिल गए. मैंने नोटिस किया कि शहज़ाद सर की नज़र लगभग मेरे पर ही रहती थी और वो किसी न किसी बहाने से मेरे से बात करने या मुझे इम्प्रेस करने की कोशिश करते रहते. और भी कई ट्रेनी मेरे पर लाइन मार रहे थे या वास्तव में हर कोई हर किसी पर लाइन मार रहा था जिनमें कुछ शादीशुदा मर्द भी थे.

मैं अपने बारे में बता दूँ, उस समय मैं बहुत ही पतली सी थी और मेरे बूब्स भी कोई ज्यादा बड़े नहीं थे. कुल मिला कर मुझे ऐसा लगता था कि मेरे अंदर कोई खास आकर्षण नहीं था जो कोई मुझ पर लाइन मारे. हाँ, मेरी आवाज़ बहुत ही पतली और सुरीली है और शहज़ाद मेरी आवाज़ से ही प्रभावित हुए थे.

पहला सप्ताह खत्म हुआ और हमारा टेस्ट हुआ. शाम को एक छोटी सी पार्टी का प्रोग्राम रखा गया, जिसमें कहा गया कि जो कोई भी कुछ भी कहानी, कविता, चुटकुले, शेर, ग़जल या गाना कुछ भी सुनाना चाहे सुना दे.
मैं बहुत खुश थी क्योंकि मुझे गाने का बहुत शौक है.
मेरी बारी आई तो मैंने लता जी का गाना ‘आपकी नज़रों ने समझा प्यार के काबिल मुझे’ सुनाया फिर तो जैसे महफ़िल रुक ही गई और हर और से किसी न किसी गाने की फरमाइश आने लगी और मैंने पांच और गाने सुनाये.

महफ़िल के बाद डिनर पर हम बैठे तो शहज़ाद सर ने अपनी कुर्सी मेरे साथ रखी ताकि कोई न कोई बात होती रहे. कभी प्लेट के बहाने तो कभी गिलास के बहाने उन्होंने मुझे छुआ. मुझे भी अब उनमें दिलचस्पी होने लगी थी.
जैसे ही डिनर ख़त्म हुआ और सब अपने अपने रूम में जाने लगे तो शहज़ाद सर ने मेरे से पूछ लिया- कल रविवार है आप क्या कर रही हैं?
मैं बोली- पहले तो मैं आराम से सो कर उठूंगी फिर पूरे हफ्ते के मैले कपड़े धोऊंगी फिर कुछ पढ़ाई-वढ़ाई.

तो उन्होंने बोला कि अगर मुझे अच्छा लगे तो कल शाम को मूवी देखने चलते हैं. शाम को थोड़ा जल्दी निकल जायेंगे. कुछ देर शहर में घूमेंगे और फिर शाम को मूवी देखने के बाद डिनर बाहर करेंगे.
मुझे भी इसमें कुछ खास बुराई नहीं लगी और वैसे भी मैं उनसे अपने आप को आकर्षित महसूस कर रही थी तो मैंने हाँ बोल दिया.

छ: बजे हम मूवी हाल पहुँच गए, इंग्लिश मूवी थी, हाल में कोई खास रश नहीं था. हमारे वाली लाइन में 4 सीट छोड़ कर केवल एक जोड़ा और बैठा था. अब अँधेरा हॉल हो और दो जवान लोग पास-पास बैठे हों तो कोई पत्थर ही होगा जिसका सेक्स की तरफ ध्यान न जाए बल्कि मैं तो कहूँगी कि सेक्स के अलावा किसी और तरफ ध्यान जाता ही नहीं.

आधा घंटा बीत गया और हम मूवी देखते रहे. मैंने महसूस किया कि शहज़ाद का ध्यान मूवी में नहीं था और वो बैचैन भी महसूस कर रहा था और बीच-बीच में चोर निगाहों से मुझे देखने की कोशिश भी करता.
शायद वो डर रहा था.
अब मैं तो पहल कर नहीं सकती थी, फिर भी मैंने कुछ करने की सोची. मैंने अपने हाथ उठा कर एक ज़ोरदार अंगड़ाई ली और मेरा हाथ उसके चेहरे से टकराया तो मैंने सॉरी बोल दिया.

थोड़ी देर बाद उसमें थोड़ी हिम्मत आई और उसने अपना हाथ मेरे हाथ पर रख दिया. मैंने भी अपना हाथ नहीं हटाया तो उसका हौंसला बढ़ा और उसने मेरे हाथ को दबाना शुरू कर दिया.
तभी इंटरवल हो गया.

इंटरवल के बाद हमारी लाइन में बैठा जोड़ा पीछे वाली लाइन में जाकर बैठ गया. अभी पांच मिनट ही हुए होंगे कि शहज़ाद ने मेरा हाथ पकड़ लिया. जैसे ही मैंने उसकी तरफ देखा उसने मेरे बाएं गाल पर किस कर दिया.
मैंने घबरा कर अपना हाथ पीछे खींच लिया.

ऐसे ही लगभग 15 मिनट बीत गए. मैं डर गई कि कहीं वो डर तो नहीं गया क्योंकि मैं भी चाहती थी कि वो कोई हरकत करे.
जब उसने कोई हरकत नहीं की तो मैंने ही उसके हाथ पर अपना हाथ रख दिया.

शहज़ाद का होंसला बढ़ा और उसने घुमा कर मेरी गर्दन में हाथ डाला और मेरा चेहरा अपनी तरफ कर के मेरे होठों पर अपने होंठ लगा दिए. मैं भी उसका साथ देने लगी. तब उसने अपना एक हाथ मेरे एक बूब पर रख दिया और उसे दबाने लगा.
जब 2-3 मिनट बीत गए तो मुझे भी अब कुछ कुछ होने लगा तो मैंने अपना एक हाथ शहज़ाद की पैन्ट के ऊपर रख कर उसके लंड को दबाना शुरू कर दिया.

अब शहज़ाद ने अपना एक हाथ मेरी कमीज़ उठा कर अंदर डाल दिया और मैंने भी उसकी सहूलियत के लिए अपना एक बूब ब्रा से बाहर निकाल कर उसके हाथ में दे दिया. थोड़ी देर बाद उसने मेरे बूब को छोड़ कर अपना हाथ मेरी सलवार के नाड़े की तरफ बढ़ाया लेकिन जब उससे नाड़ा नहीं खुला तो मैंने खुद ही खोल दिया.

जैसे ही उसने मेरे दाने पर हाथ लगाया तो मुझे जैसे करंट सा लगा और मेरा पानी निकल गया, पहली बार किसी ने उस जगह को छुआ था.
अब मेरी इच्छा थी कि मैं शहज़ाद का भी काम कर दूँ, मैंने उसकी ज़िप खोली, जैसे ही उसके लंड को बाहर निकालने के लिए अंदर हाथ डाला तभी हॉल की बत्तियां जल गई और मूवी खत्म हो गई.

हम पिक्चर हाल से बाहर आये, नज़दीक ही एक रेस्टोरेंट में डिनर किया और 10.30 गेस्ट हाउस आ गए.

अपने रूम में आ कर मुझे लगभग 2 बजे तक नींद नहीं आई मुझे अंदाज़ा था कि यही हाल शहज़ाद का होगा.

अगले दिन से फिर ट्रेनिंग शुरू हो गई. शाम को शहज़ाद ने मुझे बोला कि डिनर गेस्ट हाउस की बजाए बाहर करें.
मुझे लगा कि वो कल वाला अधूरा काम पूरा करने का जुगाड़ लगा रहा था. मेरा भी मन किया कि शहज़ाद का काम कर देना चाहिए पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. हम एक रेस्टोरेंट में गए और डिनर का आर्डर किया. डिनर आ गया और हम डिनर करने लगे.

खाना खाते-खाते शहज़ाद ने मुझे बोला कि वो एक बात कहना चाहता है.
मेरी सहमति मिलते ही उसने मुझे ‘आई लव यू’ बोल दिया.

मैं चुप रही. मेरा जवाब न पाकर उसे बैचैनी होने लगी.

वापिस गेस्ट हाउस में आकर वो अपने कमरे में और मैं अपने कमरे में चले गए. दो दिन बाद मेरी रूम पार्टनर के घर से फ़ोन आ गया कि उसकी माँ की तबियत ख़राब है और वो चली गई.

अब मैं कमरे में अकेली रह गई. अगले दिन मुझे नींद नहीं आ रही थी. एक तो कमरे में मच्छर थे और कुछ मैं बैचैन थी. मैंने रात को लगभग एक बजे शहज़ाद को फ़ोन किया. दो बार ट्राई करने के बाद उसने फ़ोन उठाया.
मैंने उसे नींद से जगाने के लिए माफ़ी मांगी और पूछा कि कोई मच्छर भगाने वाली चीज़ है तो उसने बोला की ऐसा तो कुछ उसके पास नहीं था.

फिर थोड़ी देर बाद उसका फ़ोन आया कि उसके कमरे में मच्छर नहीं हैं, अगर नींद न आ रही हो तो मैं उसके कमरे में आ जाऊं. हमारे कमरे एक ही फ्लोर पर थे. मैं पहले तो 15-20 मिनट सोचती रही, फिर मैंने जाने का फैसला किया.
मैंने जो गाउन पहना था उसी में ही उसके कमरे में चली गई.

वहाँ एक डबल बेड था 5-10 मिनट हमने बातचीत की और फिर मैंने उसे कहा कि लाइट बंद कर दे. मैं सोने की कोशिश कर रही थी पर अब नींद नहीं आ रही थी और मूवी वाले दिन की बातें याद आने लगी. मुझे लगा कि शहज़ाद भी जाग रहा था.
मैंने उसे आवाज़ दी तो पता लगा कि वो भी जग रहा था.
मैंने पूछा कि नींद नहीं आ रही क्या तो उसने बोला कि उसकी शुरू की नींद पूरी हो चुकी है अब नींद आराम से ही आएगी.

कमरे की लाइट बंद थी लेकिन कोरिडोर की लाइट से कुछ रोशनी खिड़की के शीशे से अंदर आ रही थी यानि कि घुप्प अँधेरे वाली स्थिति नहीं थी.

हम बातें करने लगे. शहज़ाद ने मेरे से पूछा कि मैंने उसकी बात का जवाब नहीं दिया तो मैं चुप हो गई. उसने जब दोबारा पूछा तो मैंने हंसकर उसे बोला- शहज़ाद, तुम्हें अक्ल नहीं है, लड़की का चुप रहना भी उसकी हाँ कहने का एक अंदाज़ होता है.

इतना सुनना था की शहज़ाद ने मुझे अपनी ओर खींच लिया और करवट बदल कर पीठ के बल हो गया. उसके इस तरह से खींचने से मैं एकदम शहज़ाद के ऊपर आ गई और उसने मुझे सिर से पकड़ कर अपने होंठ मेरे होंठों पर चिपका दिए.
लगभग 15 मिनट तक हम लिप किस करते रहे.

अब सेक्स की गर्मी दोनों को लगनी शुरू हो गई थी. फिर उसने मुझे बिठाया और मेरे मेरे गाउन की बेल्ट खोल कर उसे उतार दिया. अब मैं सिर्फ पेंटी में रह गई. शहज़ाद ने मेरे बूब्स को मसलना और चूसना शुरू कर दिया.
मैं पहले ही बता चुकी हूँ कि मेरे बूब्स कोई खास बड़े नहीं थे पर फिर भी संतरे जितने तो थे ही.

किसी भी मर्द की आदत होती है कि बूब्स छोटे हों या बड़े पर अगर औरत सामने नंगी लेटी हो तो मर्द उन्हें छोड़ता नहीं है और मसलता और चूसता ही है. मैं भी अब गर्म हो गई थी. मैंने शहज़ाद की बनियान उतार दी और उसके अंडरवियर से लंड को बाहर निकाल कर धीरे धीरे उसके साथ खेलने लगी.

शहज़ाद ने मुझे लिटा दिया और मेरी पेंटी उतार दी. अब मैं बिल्कुल नंगी थी.

शहज़ाद ने मेरे दाने को मसलना शुरू किया तो मेरी सिसकारियां निकलने लगी. मेरी सिसकारियों ने उसे भी बहुत उत्तेजित कर दिया और उसने अपना अंडरवियर उतार दिया, मेरी टांगों के बीच आ गया.
तभी उसने बेड स्विच से लाइट ऑन कर दी, मैंने घबरा कर अपनी आँखें बंद कर की और अपने हाथों से अपने बूब्स को ढक लिया, अपनी दोनों टांगों को एक दूसरे से क्रॉस करवा कर अपनी चूत को भी ढक लिया.

शहज़ाद मुझे अपनी चूत दिखाने को बोलने लगा और मैं उससे लाइट बंद करने को कह रही थी.
तब शहज़ाद ने बोला कि उसने इससे पहले कभी चूत नहीं देखी इसलिए उसे देखना चाहता है.

मुझे उस पर बहुत प्यार आया और मैंने अपनी टांगें खोल दी. शहज़ाद ने दोनों हाथों से मेरी कुंवारी चूत को फैला कर देखा फिर उसने अंदर उंगली डाल दी. मुझे थोड़ा सा दर्द हुआ पर उसके उंगली आगे पीछे करने से मैं सहज हो गई.

शहज़ाद ज्यादा इंतज़ार न कर सका और उसने अपने लंड को मेरी चूत पर लगा दिया.
मेरी चूत कुंवारी थी और टाइट थी, लंड अंदर नहीं गया और फिसल गया.

उसने फिर सेट करके जोर लगाया और लंड ने अपना रास्ता बनाते हुए अपना टोपा अंदर भेज दिया. शहज़ाद ने फिर जोर लगाया तो आधा लंड अंदर चला गया. मेरे शरीर में दर्द की लहर दौड़ गई. मैंने लंड निकालने को बोला लेकिन उसने नहीं निकाला. उलटे एक और ज़ोर का झटका लगा दिया, मेरी चीख निकल गई.

लेकिन इससे पहले शहज़ाद कुछ और करता, उसका लंड छूट गया, वो मेरे साइड में लेट गया और थोड़ी देर बाद लंड खुद ही बाहर आ गया.

मेरी कामवासना अधूरी रह गई थी, मैंने बाथरूम जा कर अपनी चूत को साफ़ किया और आकर बेड पर लेट गई.

शहज़ाद ने धीरे धीरे मेरे बूब्स को छेड़ना शुरू कर दिया तो मैंने भी उसके लंड को हिलाना शुरू कर दिया जिससे वो फिर से खड़ा होने लगा. शहज़ाद मेरे बूब्स से खेल और चूस रहा था, जब बहुत देर उसने और कुछ नहीं किया तो मैंने उसका एक हाथ पकड़ कर थोड़ा नीचे किया.

वो मेरा इशारा समझ गया और अपने हाथ से मेरी चूत की कलियों और दाने को सहलाने लगा. उत्तेजना में मेरी सिसकारियाँ निकल रही थी जिससे वो भी उत्तेजित हो गया और अपनी एक उंगली और फिर दो उंगली मेरी चूत में डाल कर आगे पीछे करने लगा.

मैंने उसे एक और उंगली डालने को बोला, अब वो 3 उँगलियाँ मेरी चूत में डाल कर मुझे पूरा आनन्द दे रहा था और मैं उसके लंड को जितना कठोर बना सकती थी, बना रही थी.

फिर मैंने अपनी टांगें पूरी चौड़ी कर दी, शहज़ाद मेरी टांगों के बीच में आया और लंड को मेरी चूत पर लगा कर धक्का लगा दिया. लंड आधा अंदर चला गया. अब मुझे दर्द भी नहीं हुआ.
फिर उसने धीरे धीरे आगे पीछे होना शुरू किया और उसकी स्पीड बढ़ती गई जैसे कोई रेल का इंजन करता है. लगभग 3-4 मिनट बाद मेरे पेट और और उसके नीचे के हिस्से में ज़बरदस्त अकड़न हुई और मैंने कांपते हुए पानी छोड़ दिया.

शहज़ाद का क्योंकि दूसरी बार था इसलिए उसका इंजन अभी चल रहा था. वो अब पसीने-पसीने हो चुका था और हांफ रहा था पर रुक नहीं रहा था. उसके पसीने की खुशबू से मेरे अंदर फिर उत्तेजना का संचार होने लगा और अब मैं भी नीचे से अपनी कमर उठा कर उसका साथ देने लगी.
7-8 मिनट बाद शहज़ाद की गति तेज़ हो गई और वो मेरे अंदर ही झड़ गया. मैं भी उसके साथ ही झड़ गई.
हम हांफते-हांफते एक दूसरे की बगल में पड़े हुए थे कब नींद आ गई पता ही नहीं चला.

सुबह जब शहज़ाद के फ़ोन का 7 बजे अलार्म बजा तो नींद खुली. दोनों ने एक दूसरे को मुस्कुरा कर देखा. शहज़ाद ने खींच कर अपने होंठ मेरे होंठों पर लगा दिए. मुझे भी आजाद होने की कोई जल्दी नहीं थी.
5 मिनट बाद शहज़ाद ने मुझे छोड़ा.
मैंने उसे बोला कि वो कोरिडोर में जा कर देखे कि कोई है तो नहीं क्योंकि मैंने अपने कमरे में जाना था और मैं उस समय सिर्फ गाऊन में थी.

उसने जब देखा कि कोई नहीं है तो मैं भाग कर अपने कमरे में चली गई.

अब तो हमारी यही रूटीन बन गई, शाम को डिनर बाहर करते, घूम फिर कर रात को आते और कभी वो मेरे कमरे में और कभी मैं उसके कमरे में. अगले कुछ दिन यही चलता रहा. फिर मेरी माहवारी आ गई उसके बाद हमारी ट्रेनिंग भी खत्म हो गई और सब अपने अपने घर.
बाकी अगले भाग में!
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और वो चली गई- भाग 2