भाभी की बहन संग चूत चुदाई की रंगरेलियाँ -3

शरद कुमार सक्सेना
अब तक आपने पढ़ा..
मैं उसकी दूसरी चूची दबाते हुए उसकी चूची को पीता रहा.. इधर वो अपने नाखूनों को मेरे लण्ड के ऊपर कटे हुए भाग पर गड़ाने लगी। उसकी इस हरकत से मेरा वीर्य हल्का सा छलक पड़ा.. उसको उसने बड़ी अदा के साथ अपनी उँगली पर वीर्य को लिया और मुझे दिखाते हुए उसको चाट गई।

उसके बाद हम लोग 69 की अवस्था में आ गए। मैं उसकी बुर को चाट रहा था और वो मेरे लण्ड को पीने में व्यस्त थी। हम दोनों इस फोरप्ले में इतने खो चुके थे कि थोड़ी ही देर में हम लोग एक-दूसरे के मुँह में ही खलास हो गए और हम दोनों ने एक-दूसरे का रस खूब चाव से पिया। फिर निढाल हो कर वैसे ही पड़े रहे।

अब आगे..

लेकिन दोस्तो.. चाहे शरीर पड़े ही निढाल हो जाए.. यदि जब दो नंगे जिस्म एक-दूसरे पर हों.. तो हाथों की हरकत अपने आप ही होने लगती है।
मेरी उँगली उसकी गाण्ड के छेद को टटोल रही थी और छेद के अन्दर आ जा रही थी, जिसके कारण कभी वो अपनी गाण्ड को टाइट करती थी.. तो कभी ढीला छोड़ देती थी।

उधर वो मेरे टट्टों से खेल रही थी.. कभी वो मेरे टट्टों को सहलाती तो कभी उसको बड़ी बेरहमी से दबा देती.. जिससे दर्द के कारण मैं बिलबिला जाता और जोर से मैं उसकी गाण्ड को काट लेता था।

इन हरकतों के कारण थोड़ी ही देर में मेरे लण्ड में वापस जान आ चुकी थी और वो भी उत्तेजित हो चुकी थी।

फिर वो मेरे ऊपर से उठी.. मेरे लौड़े के ऊपर आई.. लौड़े को बुर में सैट किया और लौड़े को अन्दर लेने के लिए दबाव देने लगी। उसकी बुर बहुत ज्यादा टाइट थी.. मुझे ऐसा लगा कि कोई धधकता हुआ कोयला मेरे लौड़े के ऊपर रखा गया है.. इस वजह से मेरे लौड़े में जलन होने लगी।

जब लौड़ा पूरा उसके अन्दर जगह बना चुका.. तो वो मेरे ऊपर झुकी और मेरे एक चूचुक को जीभ से चाटने लगी और दूसरे चूचुक को दो उंगलियों से दबाने लगी।

मुझे उसकी इस हरकत से एक मीठी-मीठी सी गुदगुदी सी होने लगी.. जिससे मेरे आँखें बन्द हो गईं.. और मैं चुदाई का अजीब सा आनन्द लेने लगा।

फिर वो ये सब करने के बाद उठी और मेरे लौड़े पर उछल-कूद मचाने लगी और साथ में ‘आह..उह्ह..ओह्ह..’ की आवाज उसके मुँह से आने लग़ी। उसकी उछल-कूद के साथ उसकी चूचियां भी उछल रही थीं.. जिसको देख कर बहुत आनन्द आ रहा था।
फिर वो उसी पोजीशन में पल्टी..

दोस्तो.. क्या बताऊँ.. उसकी दीदी और नीलम ने भी इस तरह से मुझे नहीं चोदा था.. जैसा कि वो मुझे चोद रही थी।
इस समय तो वो मुझे उन दोनों से बड़ी खिलाड़ी नजर आ रही थी। फिर वो सीधी हुई और मेरे ऊपर झुकी और मेरे निप्पलों पर थूका और बड़े प्यार से उसको चाटने लगी।
वो मेरे निप्पलों को दाँतो से काटने लगी। उधर मैं उसकी चूची को मसल रहा था। और वो मेरे निप्पलों से खेल रही थी।

फिर मैं उठा.. उसको पलंग पर लेटाया और ट्रेडिशनल तरीके से चोदने लगा.. जैसा कि अक्सर मियाँ-बीबी के बीच होता है।
तभी प्रज्ञा बोली- शरद.. यार ऐसे मजा नहीं आ रहा है.. कुछ अलग अंदाज से करो।

मैंने कहा- प्रज्ञा.. तुम तो बड़ी अनुभवी लग रही हो.. कहाँ से सीखी ये सब?
‘जीजा के अलावा और कौन सिखाएगा..??’
‘अच्छा तुम बताओ कैसे चुदाई करूँ..?’

तो बोली- तुम नीचे खड़े हो जाओ.. मेरे पैरों को अपने कंधे पर टिकाओ और तब अपना लौड़ा मेरे बुर में डालो।
मैंने वैसा ही किया.. उसके अनुसार करने पर उसकी बुर बड़ी कसी हुई सी लग रही थी और चोदने का एक अनोखा मजा आ रहा था।
थोड़ी देर मैं मुझे लगा कि मैं झड़ने वाला हूँ, तभी मैंने प्रज्ञा से पूछा- प्रज्ञा तुमने एक वादा किया था कि जो मैं कहूँगा वो तुम करोगी।
‘हाँ मेरे राजा.. बोल न.. क्या करूँ..?’
मैंने कहा- मेरा निकलने वाला है.. कहाँ निकालूँ?
‘मेरे राजा.. मेरे मुँह में आ जाओ..’
‘जानू माल मैं तुम्हारे मुँह में नहीं जमीन में गिराऊँगा और तुम कुतिया बन कर चाटो..’

इतना कहकर मैंने अपना माल जमीन पर गिरा दिया।
बिना झिझके उसने कुतिया बन कर मेरा माल चाट कर साफ़ कर दिया।
फिर वो खड़ी हुई और उसने अपनी बुर में उँगली डाली और उसी उँगली को मेरे मुँह में डालते हुए बोली- मेरे राजा तेरे लिए तो मैं सब कुछ कर सकती हूँ।
तो मैं बोला- चल रानी.. फिर एक राउंड के लिए और तैयार हो जा.. अबकी मुझे तुम्हारी गाण्ड मारनी है।

‘तो मैं मना कहाँ कर रही हूँ। गाण्ड भी तुम्हारी.. मैं भी तुम्हारी.. जो करना है वो करो.. मैं मना कब कर रही हूँ। लेकिन आओ अब नीचे चलें.. क्योंकि दीदी नीलम को लेकर आती होगी। वहीं तुम मेरी गाण्ड का बाजा बजा देना।’

फिर हम दोनों नंगे ही नीचे आ गए प्रज्ञा घुटने के बल बैठ गई और मेरे लौड़े को वापस तैयार करने लगी.. जब लौड़ा तन गया तो उसने क्रीम के ट्यूब लिया.. मेरे लौड़े पर क्रीम लगाई और ट्यूब मुझे देते हुई बोली- इसको मेरी गाण्ड में अच्छी तरह भर कर लगा दो.. काफी दिन बाद मेरी गाण्ड में लौड़ा जा रहा है.. दर्द करेगा..

मैंने ट्यूब ली.. उसकी गाण्ड के अन्दर क्रीम डाल कर उँगली से अच्छी तरह मल दिया और उसको झुका कर छेद के सेन्टर में अपने लंड को सैट करके एक तेज धक्का मारा।
अभी मेरा सुपाड़ा ही घुसा होगा कि उसकी चीख निकल गई, बोली- रहने दो.. बहुत दर्द हो रहा है.. फिर कभी मार लेना।
मैंने कहा- रानी जब गाण्ड मरवा ही चुकी हो तब कैसा दर्द..??

यह कह कर मैंने एक हाथ से उसकी चूची को मसलने लगा और दूसरे हाथ से उसकी बुर की पुत्तियों को मसलने लगा और लौड़े को धीरे-धीरे आगे पीछे करके जगह बनाते हुए पूरा का पूरा लण्ड उसकी गाण्ड में जड़ तक उतार दिया।

जब मेरा लण्ड उसकी गाण्ड में पूरा घुस गया.. तो मेरे धक्कों की स्पीड बढ़ती गई..
हाय.. क्या मुलायम गाण्ड थी मेरी प्रज्ञा की.. मन कर रहा था कि उसकी गाण्ड से लण्ड ही न निकालूँ।
लेकिन लंड था कि उसमें इतनी अधिक आग लगी थी कि अपने आप ही लौड़ा आगे-पीछे हो रहा था। पाँच मिनट बाद ही मैं खलास हो गया और अपना पूरा का पूरा माल उसकी गाण्ड में डाल दिया।

जैसे ही हम लोग की गाण्ड चुदाई खत्म हुई.. वैसे ही दरवाजे की बेल बजी और भाभी की आवाज आई- प्रज्ञा दरवाजा खोलो.. मैं नीलम को ले आई।

तभी मेरे दिमाग में एक आइडिया आया.. मैंने प्रज्ञा को अपने से चिपकाया और दरवाजा खोल दिया।
भाभी जब अन्दर आईं तो पूछने लगीं- इसको इस तरह क्यों चिपका रखा है??
मैंने कहा- इसको शर्म आ रही है..
भाभी बोलीं- साली तुमसे नंगी तो चिपकी हुई है.. और शर्म आ रही है..

मैंने कहा- यह बात नहीं है.. इसका कहना है कि आप और नीलम इसकी गाण्ड को चाटते हुए अन्दर आओगी.. क्योंकि अभी-अभी मैंने इसकी गाण्ड का बाजा बजाया है और मेरा रस इसकी गाण्ड में लगा है तो उसका स्वाद लेकर सब अन्दर आ जाओ।
तो भाभी हँसते हुए बोलीं- नीलम.. चलो पहले तुम इसकी गाण्ड को चाटो क्योंकि तुमने काफी दिनों से इसके रस को नहीं चखा है।

मैंने तुरन्त ही प्रज्ञा की गाण्ड को फैला दिया.. नीलम घुटने के बल बैठी और अपनी जीभ उसकी गाण्ड से लगा कर रस को साफ किया और उठते हुए अपने थूक से प्रज्ञा की गाण्ड को ग़ीला कर दिया।
फिर भाभी की बारी आई और उन्होंने भी प्रज्ञा की गाण्ड को चाट कर साफ किया। फिर हम सभी अन्दर आ गए और मैंने दरवाजे को बन्द कर दिया।

फिर भाभी और नीलम दोनों ने कपड़े उतार कर नंगी हो गईं.. तभी भाभी बोलीं- क्यों मादरचोदो.. तुम लोगों ने क्या पेशाब यहीं कर दिया है?

तभी प्रज्ञा बोली- नहीं दीदी ऐसी बात नहीं है.. ये मेरी नाभि चाट रहा था और मुझे गुदगुदी हो रही थी और उसी में मेरी पेशाब निकल गई।
‘ये बताओ शरद.. हम तीन बुर वालियाँ हैं और तुम्हारा अकेला लौड़ा.. तीन बुर को संभाल लेगा?’
यह बोल कर भाभी रसोई में गईं और दो गिलास दूध बना लाईं। एक गिलास मुझे देते हुए बोलीं- लो शरद.. ये तुम्हारे लिए है.. इसमें पिस्ता बादाम डाला हुआ है..

मेरे कान में बोलीं- इसके अलावा इसमें थोड़ी भांग भी डाल दी है.. इसको पी लो और तीन-तीन बुर के साथ.. सबकी गाण्ड का मजा भी ले लो.. तुमको कुछ भी नहीं पता चलेगा।

दोस्तो, भांग की एक विशेषता होती है.. इसको पीने के बाद पहली बार आप जो सोचोगे वही होगा.. मेरे काफी दोस्तों को इस बात का पता होगा।

मैंने वो दूध का गिलास एक ही झटके में खत्म कर दिया.. दूसरा गिलास भाभी जो पकड़ी हुई थी मेरे ढीले पड़े लंड को उसमें डाला और लौड़े को चूसने लगी।
बारी-बारी से यही क्रिया तीनों ने किया और उन सबने अपना दूध वाला गिलास इसी तरह से खत्म किया।

उनके इस तरह दूध पीने से मेरा लौड़ा फिर तन कर खड़ा हो गया।
फिर भाभी ने मुझे सीधा लेटाया और नीलम को मेरे घोड़े की सवारी करने का इशारा किया और खुद मेरे मुँह पर आ कर बैठ गईं..
इस तरह मैं उसकी बुर चाटने लगा।
उधर प्रज्ञा कहाँ पीछे रहने वाली थी.. वो क्रास होकर खड़ी हो गई और अपनी बुर को भाभी के हवाले कर दिया.. जिसको भाभी बड़े ही प्यार से चाट रही थीं।

इस तरह से सभी बारी-बारी से मेरे घोड़े की सवारी भी कर रही थीं और एक-दूसरे को अपनी बुर और गाण्ड चटवा कर उसका आनन्द ले रही थीं।
जो मेरे घोड़े की सवारी करती और जिसका माल छूटने वाला होता.. वो मेरे मुँह में अपना माल छोड़ने के लिए आ जाती और मैं बड़े प्यार से उसके माल को चाट कर साफ कर देता।

अन्त मे मेरा भी माल छूट गया जिसको तीनों ने बारी-बारी से लेकर साफ कर दिया।
उसके बाद हम लोगों को पेशाब बहुत जोरों से लगी थी.. इसलिए हम सभी बाथरूम में गए और तीनों ने एक साथ पेशाब की.. जिससे आने वाली आवाज किसी झरने के समान सुनाई दे रही थी।

उसके बाद मैंने फिर से सबके बुर को चाट कर साफ किया और बाकियों ने मेरे लौड़े को चाट कर साफ किया।

दोस्तो, मेरी यह कहानी चूत चुदाई के रस से भरी हुई काल्पनिक मदमस्त काम कथा है.. आप बस इसका मजा लीजिए और अपने लण्ड-चूत को तृप्त कीजिए.. साथ ही मुझे ईमेल लिखना न भूलें।

मेरी अगली जो जल्द ही आने वाली है.. उसकी कहानी भी मेरी एक कामकल्पना पर आधारित होगी.. जिसमें सेक्स की गंदगी एक अलग चरम पर होगी।
आपका अपना शरद..
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